प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दाऊद बोहरा समुदाय के बीच बार-बार जाना भी संघ और बीजेपी का राजनीतिक बयान ही है. प्रधानमंत्री मोदी 2018 में इंदौर में बोहरा समुदाय की एक मस्जिद में गए थे और तब भी वैसे ही अपनेपन का प्रदर्शन किया था जैसा मुंबई में देखने को मिला है. उन्होंने बोहरा समुदाय के एक शिक्षण संस्थान के परिसर में कबूतर भी उड़ाए और रोटियां भी बनाई और बोले कि वह ना तो प्रधानमंत्री के तौर पर, न मुख्यमंत्री के रूप में उनके बीच है. बल्कि परिवार की चार पीढ़ियों से जुड़े हुए हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के दौरे को बीएमसी चुनावों की राजनीति से जोड़कर देखा और समझा जा रहा है और इसकी सबसे बड़ी वजह बीएमसी के कई वार्डों में मुस्लिम वोटों का निर्णायक भूमिका में होना माना जा रहा है. मोदी से पहले महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी बोहरा समुदाय के एक कार्यक्रम में शामिल हुए थे. जाहिर है यह बीएमसी चुनाव की तैयारियों का ही हिस्सा है.
अपने हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर राजनीतिक विरोधियों के निशाने पर रहे उद्धव ठाकरे की तरफ से भी ऐसे मुस्लिम वोटरों को रिझाने की कोशिश करते देखा गया है. क्या बीजेपी को लगता है कि यह मुस्लिम मतदाता उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना का रुख कर सकते हैं और इसलिए मुंबई में मोदी का कार्यक्रम रखकर बीजेपी यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि बीजेपी मुस्लिमों के खिलाफ नहीं है?
बीजेपी की सरकार और मुस्लिम समुदाय
दिल्ली के रामलीला मैदान में जमीयत उलेमा ए हिंद का 34वां अधिवेशन ऐसे वक्त बुलाया गया जब देश के 9 राज्यों के विधानसभा के चुनाव एक के बाद एक होने जा रहे हैं. साथ ही जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव कराए जाने की संभावना जताई जा रही है और यह सब अगले आम चुनाव से पहले हो जाना है. अधिवेशन में जमीयत के उलेमा और नुमाइंदे मुस्लिम समुदाय से जुड़े तमाम मुद्दों पर चर्चा करते पाए गए और यूनिफॉर्म सिविल कोड का मसला भी उनमें से एक रहा है.
यह भी समझना जरूरी है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बोल रखा है कि बीजेपी शासित राज्यों में यूनिफॉर्म सिविल कोड निश्चित तौर पर लागू किया जाएगा. उत्तराखंड को बीजेपी ने इसके पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चुना है. जमीयत ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को वोट की राजनीति की मंशा से प्रेरित बताया है और लागू किए जाने को लेकर चेतावनी भी दी है. साथ ही कहा है कि सरकार इस मामले में अदालतों को गुमराह कर रही है और इसे लागू करके मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करना चाहती है.
बीजेपी के समर्थकों का क्या?
हैदराबाद में हुई बीजेपी की कार्यकारिणी के बाद खबर आई थी कि कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने बनाने की सलाहियत दी है. मोदी की सलाह रही कि पसमांदा मुसलमानों के बीच पहुंचकर बीजेपी के नेता और कार्यकर्ता सरकारी योजनाओं की जानकारी दें और अगर उनके मन में कोई संदेह है तो दूर कर उनको बीजेपी को वोट देने के लिए मोटिवेट करें. बाद में यूपी और बिहार में जगह-जगह ऐसे कार्यक्रमों की तैयारी की गई.
सिर्फ मुख्तार अब्बास नकवी ही नहीं उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक भी ऐसे सम्मेलनों में गए और मोदी का संदेश पहुंचाने की कोशिश की. बोहरा समुदाय के बीच प्रधानमंत्री मोदी की मौजूदगी भी पसमांदा मुसलमानों को बीजेपी के पक्ष में करने की कोशिश ही मानी जा रही है. बीजेपी का मानना है कि बोहरा समुदाय के साथ उसका तालमेल अच्छा हो सकता है. देश की मुस्लिम आबादी में दाऊदी बोहरा समुदाय की हिस्सेदारी 10 फ़ीसदी मानी जाती है, जो महाराष्ट्र और गुजरात में बसे हुए हैं.
बीजेपी के रणनीतिकार भले ही मुसलमानों को अलग-अलग कैटेगरी में रखते हैं, लेकिन बीजेपी का सपोर्टर तो ऐसा बिल्कुल नहीं मानता. मोदी का नाम रख लेने की बात और है लेकिन यह सब लंबा चल पाएगा, ऐसी कोई गारंटी भी नहीं है. इससे पहले बीजेपी की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा के मामले में भी पार्टी का स्टैंड बीजेपी समर्थकों को अच्छा नहीं लगा. संदेश तो यहां तक गया कि बीजेपी के नए-नए मुस्लिम प्रेम में कभी भी और किसी की भी कुर्बानी दी जा सकती है.
इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीजेपी के समर्थक मोदी को उनके हिंदुत्व की छवि के कारण ही पसंद करते हैं, वरना किसी जमाने में लौह पुरुष माने जाने वाले लालकृष्ण आडवाणी का क्या हाल हुआ सभी जानते हैं. यह भी मान लेते हैं कि आडवाणी का यह हाल किसी और ने नहीं बल्कि संघ की शह पर मौजूदा बीजेपी नेतृत्व ने ही किया है. लेकिन यह भी तो है कि आडवाणी को एक छोटी सी गलती ही भारी पड़ी है. मोहम्मद अली जिन्ना के मामले में आडवाणी के स्टैंड की वजह से ही उनको बीजेपी के अच्छे दिन आने पर भी बुरे दिन देखने पड़े.
बीजेपी आज लगातार चुनाव जीतने की मशीन बनी हुई है तो यह कट्टर हिंदुत्व का एजेंडा ही है जिसकी बदौलत तमाम बदलावों से गुजरने के बाद भी बीजेपी के समर्थकों के बीच ‘पार्टी विद डिफरेंस’ बनी हुई है. कम से कम बीजेपी का सपोर्टर तो ऐसा ही समझता है. अगर बीजेपी भी आडवाणी बन जाए तो क्या समर्थक तब भी बीजेपी के साथ बने रहेंगे?