अभी हाल ही में 3 राज्यों में चुनाव हुए हैं. दिल्ली नगर निगम में और 2 राज्यों में विधानसभा चुनाव. भाजपा दो चुनाव हारी है. दिल्ली नगर निगम में वह 15 साल से सरकार में थी. आम आदमी पार्टी ने उससे गद्दी छीन ली. इसी तरह हिमांचल में भाजपा की सरकार थी और सीधी लड़ाई में कांग्रेस ने उसे सत्ता से बेदखल कर दिया.
भाजपा केवल गुजरात में अपनी सरकार बचाने में कामयाब रही. लेकिन भाजपा के द्वारा उत्सव इस तरह मनाया गया जैसे कोई जंग जीत ली हो. संदेश भी दिए गए, सीख भी दी गई और लंबे चौड़े भाषण भी दिए गए और इसे मीडिया चैनलों के माध्यम से लाइव टेलीकास्ट भी किया गया. कार्यकर्ताओं का मनोबल सातवें आसमान पर दिखाई दिया. इस उत्सव की आदत से ही भाजपा एक चुनाव जीतकर अगले 4 चुनाव में जान तक लड़ा देने वाले कार्यकर्ताओं में जोश भर देती है.
दूसरी तरफ कांग्रेस है. हिमाचल प्रदेश में जीत कर भी कोई शोर-शराबा दिखाई नहीं दिया. हिमाचल की जीत के बाद उत्सव नदारद था. क्योंकि बड़े नेता भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त हैं. केवल शपथ ग्रहण समारोह में पहुंचे थे. मंच की शोभा बढ़ाई और वापस आ गए. शपथ से पहले जीत का माहौल कार्यकर्ताओं का उत्साह सब कुछ गायब रहा. अब नेताओं ने तो शपथ ले ली. बन गए मुख्यमंत्री, मंत्री. कार्यकर्ताओं का क्या?
भाजपा 24 घंटे चुनावी मूड में रहती है. उसे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इसके पहले कौन उसके खिलाफ था और कौन पक्ष में. यही वजह है कि जीत की गुंजाइश देखते ही गुजरात में सरकार को हिला कर रख देने वाले हार्दिक पटेल और अल्पेश ठाकोर को भाजपा में शामिल करते हुए जरा भी संकोच नहीं किया. दूसरी तरफ यही काम कांग्रेस करती तो पार्टी में कई नेता खड़े हो जाते जो कहते कि इन्हें लेंगे तो हम पार्टी छोड़ देंगे.
सक्रियता भी एक बड़ा मुद्दा है. गुजरात में प्रधानमंत्री मोदी जितने सक्रिय थे कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की सक्रियता उनके सामने बहुत कम थी. हैरत वाली बात यह है कि भारत जोड़ो यात्रा चल रही है उससे कहीं अधिक फोकस गहलोत और पायलट की आपसी अदावत पर है. कुल मिलाकर देखा जाए तो कांग्रेस को लेकर अगर मीडिया में बात भी हो रही है तो सिर्फ बगावती कारणों से. कांग्रेस की तरफ से जीत का उत्सव नहीं मनाया जा रहा है. कार्यकर्ताओं में जोश पैदा करने की कोशिश जीत के बाद नहीं की जा रही है.