Congress president election 2022: कांग्रेस हमेशा से ही कई विचारधारा के लोगों से समाई हुई पार्टी रही है. किसी भी राजनीतिक दल के अंदर कई तरह के खेल चलते हैं और वह गोपनीय कमरों में खेले जाते हैं. लेकिन कांग्रेस के अंदर हमेशा से ही सब कुछ सार्वजनिक होता है. नेता मीडिया के कैमरों पर आकर अपनी ही पार्टी की गोपनीय बातों को सार्वजनिक करते हैं, अपनी ही पार्टी के नेताओं तथा विवादों के खिलाफ बयानबाजी भी मीडिया में आकर कर लेते हैं. एक बार फिर से उथल-पुथल भरे कुछ दिन कांग्रेस के लिए बीते हैं. इन दिनों में कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र की फिर से थोड़ी बहुत झलक दिखाई दी है.
पिछले दिनों हमने देखा कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना तय माना जा रहा था. लेकिन अचानक ही राजस्थान के अंदर ऐसा खेल खेला गया कि कांग्रेस आलाकमान के सामने झुकने से ही राजस्थान के कुछ नेताओं ने इंकार कर दिया और इसके पीछे की पूरी रणनीति अशोक गहलोत की बताई गई. हालांकि अशोक गहलोत इससे इंकार करते रहे.
उन्होंने सोनिया गांधी से माफी भी मांगी और यह घटनाक्रम ऐसा रहा कि अशोक गहलोत कांग्रेस अध्यक्ष पद की दौड़ से बाहर हो गए और अभी भी राजस्थान में मुख्यमंत्री का मसला अटका हुआ है. राजस्थान एक बड़ा राज्य कांग्रेस के पास बचा हुआ है. अगर यह भी नेताओं की गलती से कांग्रेस के हाथ से निकल गया तो यह बड़ा झटका होगा. क्योंकि अगले साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं.
इस बार गांधी परिवार का कोई सदस्य कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बनने जा रहा है. कई सालों बाद गांधी परिवार से अलग कांग्रेस को अध्यक्ष मिलने वाला है और इसके लिए दो नाम सामने दिखाई दे रहे हैं. मलिकार्जुन खडगे और शशि थरूर. लेकिन सबसे दिलचस्प बात यह हुई है कि खडके के चुनाव में कूदने के साथ ही पार्टी में आंतरिक सुधार की कोशिश के लिए गठित G-23 का अंत हो गया. इस ग्रुप ने कांग्रेस के अंदर प्रधानमंत्री मोदी की हां में हां मिलाते हुए परिवारवाद के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश की थी. शशि थरूर ने कुछ लोगों के साथ मिलकर यह बात उठाई थी कि पार्टी में एक फुल टाइम अध्यक्ष होना चाहिए. जब मलिकार्जुन खडगे भी अध्यक्ष के चुनाव के लिए खड़े हुए तो शशि थरूर के साथी खडके के साथ हो लिए.
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष कौन बनता है. क्योंकि इस बार कांग्रेस ने अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया है. पिछले कुछ सालों में कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं ने पार्टी छोड़ी है. राहुल गांधी बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ लड़ाई लड़ने की बात करते हैं, लेकिन उन्हीं की पार्टी के नेता उनकी बातों को सपोर्ट करते हुए नजर नहीं आते हैं, उनके कंधे से कंधा मिलाकर चलते हुए नजर नहीं आते हैं. जिस तरह की आवाज प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ राहुल गांधी उठाते हैं उस आवाज को मजबूत करने का काम भी कांग्रेस के बड़े नेताओं ने पिछले कुछ सालों में नहीं किया है और कई उनके साथ ही आज बीजेपी में शामिल हो गए हैं.
कांग्रेस पार्टी ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है, ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि किसी बड़े राजनीतिक संगठन में एक अध्यक्ष की भूमिका क्या होती है इसको समझने के लिए यह जानना जरूरी है कि जब पार्टी सत्ता में होती है तब पार्टी का नेता राजनीतिक नेतृत्व के प्रति जवाबदेह होता है. ऐसे में पार्टी अध्यक्ष एक मैनेजर या प्रबंधक की हैसियत से पार्टी को चलाता है. लेकिन जब पार्टी सत्ता में नहीं होती उस वक्त राजनीतिक नेतृत्व ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है और ऐसे में अक्सर राजनीतिक नेता ही पार्टी की बागडोर संभालता है. तो देखना दिलचस्प होगा कि क्या जो भी कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनता है वह गांधी परिवार के साथ सामंजस्य बिठाकर पार्टी को चलाता है या फिर उसके नेतृत्व में एक बार फिर से कांग्रेस बिखर जाएगी.
कांग्रेस में यह देखा गया है कि गांधी परिवार के नेतृत्व में तमाम कार्यकर्ता और नेता हमेशा आगे बढ़ने के लिए तैयार रहे हैं. लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 के बाद लगातार गांधी परिवार के खिलाफ दुष्प्रचार किया मीडिया ने भी परिवारवाद के मुद्दे पर गांधी परिवार की छवि देश की जनता के सामने खराब करने की कोशिश की और अब कहीं ना कहीं उन्हीं बातों को दिमाग में रखकर गांधी परिवार ने कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव ना लड़ने का फैसला भी ले लिया है. ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या गांधी परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति अध्यक्ष बनता है उसके बाद भी मीडिया और प्रधानमंत्री मोदी गांधी परिवार पर परिवारवाद के लिए हमले करना बंद करते हैं या नहीं.