बीजेपी ने 2024 की तैयारियां चालू कर दी है. 2024 के लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है. जहां प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अतिविश्वासी होकर चुनाव लड़ने की बात कही है, तो वहीं विपक्ष के अलग-अलग मोर्चे अपने-अपने विश्वास के दम पर ताल ठोकने की तैयारी कर रहे हैं. बीजेपी को हराने के लिए एकजुट विपक्ष का होना आवश्यक है. लेकिन विपक्ष बीजेपी को अति विश्वासी बनने पर मजबूर कर रहा है.
जहां एक तरफ राहुल गांधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए संदेश दिया है कि देश की जनता कांग्रेस के साथ है. वही अखिलेश केसीआर और अरविंद केजरीवाल जैसे क्षत्रप मिलकर सरकार बनाने का सपना देख रहे हैं. इधर ममता बनर्जी और नीतीश कुमार अलग-अलग रणनीति पर काम कर रहे हैं. लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या बीजेपी के खिलाफ इस तरह से जीत पाएगा विपक्ष? जो कि असली विपक्ष है ही नहीं.
विपक्ष के जितने मोर्चे बनेंगे उससे बीजेपी को कम और बीजेपी के विरोधी दलों को ज्यादा नुकसान होता हुआ दिखाई दे रहा है. इधर लोकसभा चुनाव से पहले लगभग सभी पार्टियों को अपनी योग्यता सिद्ध करनी होगी. के. चंद्रशेखर राव 2024 के सिंहासन का सपना देख रहे हैं, लेकिन तेलंगाना के विधानसभा चुनाव उनके सामने बड़ी चुनौती है. अगर तेलंगाना में जीत नहीं मिलती है तो किस मुंह से देश का नेतृत्व जनता से मांगेंगे?
ऐसा ही हाल कुछ हद तक कांग्रेस का भी है. कांग्रेस के लिए छत्तीसगढ़ और राजस्थान बचाना बहुत जरूरी है. अगर कांग्रेस ऐसा कर पाती है तो वह क्षेत्रीय दलों को संदेश देने में कामयाब हो पाएगी. नीतीश कुमार इस जुगलबंदी में है कि किसी तरह विपक्ष एक हो जाए और बीजेपी को हटाया जाए. लेकिन यहां भी नीतीश ने कुर्सी को लेकर अपनी मंशा स्पष्ट नहीं की है.
कुछ दिनों पहले चंद्रशेखर राव ने विपक्ष की एक की एक बड़ी रैली की, जिसमें अरविंद केजरीवाल, अखिलेश यादव जैसे नेता शामिल हुए. अखिलेश यादव ने कहा कि जो प्रोग्रेसिव सोच रखता है ऐसा विपक्ष साथ आ रहा है. तो क्या राहुल गांधी, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी प्रोग्रेसिव सोच नहीं रखते? राहुल गांधी ने भी इशारों ही इशारों में कह दिया कि कांग्रेसी असली विपक्ष है. राहुल गांधी ने तो पिछले दिनों यहां तक कह दिया था कि क्षेत्रीय दलों के पास कोई विचारधारा नहीं है और उनका वजूद उनके क्षेत्र तक ही सीमित है.
समाजवादी पार्टी को लेकर राहुल गांधी पहले ही कह चुके हैं कि समाजवादी पार्टी एक क्षेत्रीय पार्टी है, यह राष्ट्रीय पार्टी जैसे केंद्र में नहीं रह सकती है. ऐसे में राहुल का यह संदेश सभी क्षेत्रीय पार्टियों के लिए हो गया. कुल मिलाकर विपक्ष के कई मोर्चे हो चुके हैं. अगर यह साथ नहीं आते तो 2024 के लिए बात बनना मुश्किल होगी. वही बीजेपी को अपना लक्ष्य पता है उसकी तैयारियां उसके अनुरूप है.
तमाम क्षेत्रीय पार्टियों की अगर बात की जाए तो वह सिर्फ कुर्सी तक कैसे पहुंचा जाए इसकी लड़ाई लड़ रहे हैं. कांग्रेस को दरकिनार करके बीजेपी को सत्ता से हटाकर कुर्सी प्राप्त कैसे की जाए इसकी लड़ाई लड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं. लेकिन कोई भी क्षेत्रीय दल जनता के मुद्दों पर सड़कों पर उतरकर संघर्ष करता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. जबकि इसके विपरीत राहुल गांधी सड़कों पर उतरे हुए हैं, जनता की समस्याओं को सुन रहे हैं. भारत जोड़ो यात्रा के जरिए वह बीजेपी से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार दिख रहे हैं. लेकिन क्या क्षेत्रीय दल राहुल गांधी की राह आसान होने देंगे?