राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्य प्रदेश से गुजर चुकी है और मध्य प्रदेश में राहुल गांधी की इस यात्रा को अपार समर्थन जनता का मिला है. अब पूरा दारोमदार मध्य प्रदेश कांग्रेस के नेताओं के ऊपर है कि जो समर्थन राहुल गांधी की इस यात्रा को मध्यप्रदेश में मिला है उसका कितना लाभ वह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में उठा पाते हैं. भारत जोड़ो यात्रा को मध्यप्रदेश में मिले समर्थन को चुनावों में मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ और उनकी टीम कितना भुना पाएगी यह आने वाला वक्त तय करेगा. लेकिन क्या कांग्रेस मध्यप्रदेश में एक बार फिर से जीत दर्ज करके सरकार बनाने की स्थिति में है?
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने मध्य प्रदेश के जिन भी इलाकों को छुआ है उनमें अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के मतदाताओं की संख्या अधिक है. राज्य में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 45 और 35 सीटें अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं. यह 82 सीटें ही सरकार बनाने की प्रमुख राह बनती हैं. 2003 में दिग्विजय सिंह की सरकार को हराकर बीजेपी ने बंपर बहुमत हासिल किया था और उस वक्त बीजेपी ने एससी-एसटी की कुल 67 सीटों पर परचम लहराया था.
साल 2008 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में एससी-एसटी की 54 और 2013 में बीजेपी ने एक निर्दलीय को मिलाकर 60 सीटें जीतकर सरकार बनाने की हैट्रिक लगाई थी. लेकिन साल 2018 में पासा पलट गया था एससी-एसटी की कुल 85 सीटों में बीजेपी 34 ही जीत सकी थी, उसका नंबर 109 पर आकर रुक गया था. नंबर कम हो जाने से बीजेपी को विपक्ष में बैठना पड़ा था और कमलनाथ के नेतृत्व में मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई थी.
बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से कमलनाथ की सरकार गिर गई थी. भाजपा को पुनः सत्ता में लौटने का मौका मिल गया था। बहरहाल राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश के विशेष क्षेत्रों को नाप दिया है. उनकी पूरी यात्रा बैलेंस से परिपूर्ण दिखाई दी है. छिटपुट विवादों को दरकिनार कर दिया जाए तो कोई बड़ी कंट्रोवर्सी मध्यप्रदेश में देखने को नहीं मिली. राहुल ने बड़े ही सलीके से मोदी तथा पूरी बीजेपी और आरएसएस पर राजनीतिक निशाने भी साधे हैं.
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बीच राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव एक साल बाद है और इसमें वक्त जरूर है, लेकिन राहुल गांधी की यात्रा ने मालवा निमाड़ क्षेत्र के साथ-साथ मध्यप्रदेश में एक वातावरण बनाने का काम तो कर ही दिया है. कांग्रेस का कार्यकर्ता मोब्लाइज हुआ है उसमें उत्साह का संचार हुआ है. इस यात्रा का लाभ उठाने और भुनाने के लिए मध्य प्रदेश कांग्रेस को एकजुट होना होगा. ऐसे कार्यक्रम बनाने होंगे जिससे कार्यकर्ताओं में उत्साह बना रहे और अगर ऐसा होता है तो निश्चित तौर पर कांग्रेस की सरकार बनने की संभावना है बन सकती हैं.
मध्यप्रदेश में कांग्रेस के पास दिग्गज नेताओं की एक लंबी लिस्ट मौजूद है, जिसमें कमलनाथ के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री और पीसीसी चीफ का दायित्व निभा चुके सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया, अरुण यादव के अलावा स्वर्गीय अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह तथा और भी युवा नेताओं की फौज मौजूद है. इन नेताओं के अलावा भी एक बेहतर टीम कमलनाथ के पास मौजूद है.
मध्यप्रदेश में सरकार के खिलाफ मुद्दों की कमी नहीं है. इसके अलावा राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे भी मध्य प्रदेश की लोकल जनता को प्रभावित कर रहे हैं. इन मुद्दों को कैश अगर कांग्रेस करा लेती है तो निश्चित तौर पर विधानसभा चुनावों में सरकार बनाने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी और अगर मध्य प्रदेश में कांग्रेस विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करके सरकार बना लेती है तो निश्चित तौर पर इसका फायदा उसे लोकसभा चुनावों में मिल सकता है.