राहुल गांधी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को 21वीं सदी का कौरव बताया है और कहा है कि धनवानो से उसकी सांठ-गांठ है. भारत जोड़ो यात्रा के क्रम में हरियाणा और पंजाब के रास्ते पर यात्रा कर रहे पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कौरव कौन थे? मैं आपको 21वीं सदी के कौरव के बारे में बताना चाहता हूं.
राहुल गांधी ने कहा कि 21वीं सदी के कौरव खाकी हाफ पेंट पहनते हैं. हाथों में लाठी लेकर चलते हैं और शाखा का आयोजन करते हैं. भारत के 2-3 अरबपति इनके साथ खड़े हैं. राहुल गांधी ने बीजेपी और R.S.S. को असली टुकड़े-टुकड़े गैंग भय और नफरत की सियासत करने वाला करार दिया था. इससे पहले राहुल गांधी ने संघ की तुलना मिस्र के प्रतिबंधित संगठन मुस्लिम ब्रदरहुड से की थी.
राहुल गांधी के इतने तीखे हमलों के बावजूद संघ के रुख को लेकर चर्चाएं तेज हैं. राजनीतिक विश्लेषक सवाल कर रहे हैं कि जिस संघ ने महात्मा गांधी की हत्या से जुड़े वाले बयान पर राहुल गांधी को अदालत में घसीट लिया था, वह हाल के बयानों पर इतना हो हल्ला क्यों नहीं कर रहा है?
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल-फिलहाल कई कार्यक्रमों में शिरकत की है और मीडिया से भी उन्होंने कई बार बात की है. लेकिन राहुल गांधी के बयानों को लेकर वह खामोश है.
राहुल गांधी द्वारा जो हमले हो रहे हैं और संघ की चुप्पी को लेकर राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संघ और बीजेपी के बीच सब कुछ ठीक नहीं है. कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि संघ के लोग चिढ़ तो रहे हैं, लेकिन उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा है की प्रतिक्रिया क्या देनी है?
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नरेंद्र मोदी बीजेपी की रहनुमाई कर रहे हैं. नरेंद्र मोदी ही संघ का भी संचालन कर रहे हैं. संघ और बीजेपी के रिश्ते का समीकरण तेजी से बदल रहा है और जाहिर है इससे संघ का एक वर्ग और असहज है.
मोदी की दो बार लगातार भारी जीत और जनता के बीच उनकी पकड़ ने संघ कार्यकर्ताओं पर भी असर डाला है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर संघ के कार्यकर्ताओं को मोदी और मोहन भागवत में से एक को चुनना होगा तो वह मोदी को चुनेंगे. वर्तमान समय में संघ पूरी तरह प्रधानमंत्री मोदी के अधीनस्थ है. ज्यादातर संघ के पदाधिकारी इससे असहज हैं.
लेकिन उनकी त्रासदी यह है कि वह कुछ कर नहीं सकते, इसलिए भी राहुल गांधी के हमलों का जवाब संघ की तरफ से उस तरह नहीं दिया जा रहा है. पुराने समय में संघ एक नैतिक ताकत के तौर पर काम करता था और राजनीतिक मैदान में वह खुले तौर पर दिखाई नहीं देता था. लेकिन पिछले सालों में चुनाव के सिलसिले में जिस तरह से खुलकर संघ के कार्यकर्ताओं का इस्तेमाल हो रहा है उसके कारण दोनों संगठनों में जो एक फैसला और फर्क दिखता था वह खत्म हो गया है.
इसलिए ऐसा माना जा रहा है कि राहुल गांधी के बयानों का जवाब बीजेपी के नेताओं की तरफ से दे दिया जाता है इसके लिए भी संघ का शीर्ष नेतृत्व अब उनकी बातों का जवाब नहीं दे रहा है या कहीं ना कहीं वह असहज महसूस कर रहा है प्रधानमंत्री मोदी की संघ के कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रियता को लेकर.