Third Front

2024 लोकसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी, नीतीश कुमार और चंद्रशेखर राव अपने अपने स्तर पर तीसरा मोर्चा (Third Front) बनाने का प्रयास कर रहे हैं. नीतीश कुमार जहां कांग्रेस को लेकर बीजेपी के खिलाफ छोटे दलों को जोड़ना चाहते हैं. वही ममता बनर्जी गैर वामदलों के साथ आगे बढ़ना चाहती हैं. तीसरे मोर्चे के तीसरे महारथी चंद्रशेखर राव गैर भाजपा और गैर कांग्रेसी दलों को जोड़कर तीसरे मोर्चे को आकार देना चाहते हैं.

दो बड़े राष्ट्रीय दलों बीजेपी और कांग्रेस के इतर देश में दर्जनों ऐसे छोटे दल है जो स्थानीय स्तर पर अपना वजूद रखते हैं. कांग्रेस के सिकुड़ने के साथ एक ओर जहां बीजेपी का विस्तार हुआ है वहीं क्षेत्रीय दलों का आकार भी दिखाई देता है. ऐसे में यह क्षेत्रीय दल समय-समय पर एकजुट होने की कोशिश करते रहते हैं, जिसे भारतीय राजनीति में तीसरा मोर्चा कहा जाता है.

तीसरे मोर्चे का इतिहास भी भारतीय राजनीति में पुराना है. लेकिन भारतीय राजनीति में तीसरे मोर्चे का इतिहास निराशाजनक ही रहा है. तेलंगाना राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष तथा तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव इस इतिहास को झुठला कर तीसरे मोर्चे को आकार देने में जुटे हुए हैं. पिछले हफ्ते उन्होंने हैदराबाद में जो रैली आयोजित की उसमें केरल के सीएम पी. विजयन, पंजाब के भगवंत मान, दिल्ली के अरविंद केजरीवाल तथा समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव सहित कई क्षेत्रीय पार्टियों के नेता शामिल हुए.

इस रैली को भारत राष्ट्र समिति के बैनर तले आयोजित किया गया था, जिसे तीसरे मोर्चे को तैयार करने की कवायद माना जा रहा है. हालांकि कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी ममता बनर्जी की टीएमसी इस रैली से नदारद रही. केसीआर ने रैली के माध्यम से एनडीए और बीजेपी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर तीसरा मोर्चा बनाने की दिशा में पहला कदम बढ़ा दिया है, लेकिन यह कितना आगे तक जाएगा इसको लेकर संशय लगातार बना रहेगा, वह भी तब जब देश की कई क्षेत्रीय दल उनसे दूरी बना रहे हैं.

दरअसल क्षेत्रीय नेताओं में प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा गठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी है. यूपी में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने बीते यूपी विधानसभा चुनाव में टीएमसी और ममता बनर्जी से नजदीकी दिखाई थी. लेकिन अब अखिलेश यादव केसीआर के साथ नजर आ रहे हैं. बीजेपी और कांग्रेस विरोध के नाम पर कई वैचारिक ध्रुवो को एक मोर्चे पर साथ लाना आसान नहीं है. लेकिन केसीआर इस सियासी बाधा को पार भी कर लेते हैं तो बड़ा सवाल है कि इस मोर्चे का नेतृत्व कौन करेगा?

क्या केजरीवाल केसीआर के नाम पर तैयार होंगे? टीएमसी, एनसीपी, डीएमके या एआईडीएमके जैसे दलों के शामिल हुए बगैर तीसरे मोर्चे की प्रभावी कल्पना संभव है? ममता बनर्जी कांग्रेस और वामपंथी हीन तीसरे मोर्चे की वकालत करती रही हैं. ममता ने कहा था कि वह हेमंत सोरेन, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव तथा अन्य क्षेत्रीय दलों का सहयोग से बीजेपी की 100 सीटें घटाने का प्रयास करेंगी.

लेकिन नए समीकरण के लिहाज से अखिलेश केसीआर के साथ नजर आ रहे हैं. साफ है तीसरे मोर्चे के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है छोटे दलों का अपना राजनीतिक स्वार्थ और पूर्वाग्रह. बड़े दलों के खिलाफ एकजुट होते हैं लेकिन उनके निजी हित आपस में इतनी तेजी से टकराते हैं कि थोड़ी ही समय में वह सब अलग अलग हो जाते हैं. इसलिए इस बार भी तीसरे मोर्चे का मार्ग कठिन ही लग रहा है.

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