Rajasthan assembly election 2023: राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया मराठा राजपूत है तो जाट राजघराने में उनकी शादी हुई है. उनके पति का जन्म सिख राजघराने में हुआ और वह जाट राजघराने में नाना की गोद आए. इसी की बदौलत उन्हें राजस्थान की राजनीति में अपना कद इतना बड़ा करने का मौका मिला.
वसुंधरा राजे को राजस्थान के रण में जब उतरा गया तो उन्होंने भाजपा की उदास और आंतरिक खींचतान की राजनीति के बावजूद 2003 के चुनाव में 200 में से 120 सीटें लाकर इतिहास रच दिया. इससे पहले कभी भी भारतीय जनता पार्टी राजस्थान की राजनीति में बहुमत नहीं ला पाई थी. वसुंधरा दो बार राजस्थान की मुख्यमंत्री रही हैं.
लेकिन राजनीतिक प्रेक्षकों का यह भी मानना है कि 2013 में वह मोदी लहर के कारण मुख्यमंत्री बन पाई थीं. लेकिन उस चुनाव में नरेंद्र मोदी ने जब प्रदेश में तमाम इलाकों में जनसभाओं को संबोधित किया तो भीड़ जबरदस्त इकट्ठी हो रही थी. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि उसे चुनाव में वसुंधरा राजे ने समय रहते तत्कालीन गहलोत सरकार के खिलाफ एक बड़ी यात्रा निकाली थी, जिसमें उनके साथ भाजपा नेता भूपेंद्र यादव थे.
लेकिन समय बदल चुका है. वसुंधरा राजे का रुतबा इस वक्त बीजेपी में उस स्तर का नहीं है. इस बार उन्हें गहलोत की मौजूदा सरकार के खिलाफ राजनीतिक यात्रा निकालने की अनुमति पार्टी नेतृत्व के द्वारा नहीं मिल पाई है. बल्कि इस बार कर अलग-अलग टीमों के माध्यम से प्रदेश की चार अलग-अलग दिशाओं में राजनीतिक यात्राएं निकाली गई.
लेकिन वसुंधरा राजे की यात्राओं जैसा असर पैदा नहीं हो पाया. इस वक्त राजस्थान बीजेपी की राजनीति का परिदृश्य नया आकर ले रहा है. सियासी गुलों में रंग भरने और सत्ता के गुलशन का कारोबार चलाने के लिए कई नए चेहरे चर्चा में है और वसुंधरा राजे को किनारे करने की कोशिश हो रही है.
इस बदलाव के संकेत 5 साल पहले उस समय मिले जब वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार चली गई और अशोक गहलोत के नेतृत्व में कांग्रेस वापस राजस्थान में सरकार बनाने में कामयाब हुई. कुछ ही दिन बाद 10 जनवरी 2019 को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की टीम में उन्हें उपाध्यक्ष बनाया गया. इससे यह तय कर दिया गया कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष नहीं बनाया जाएगा.
प्रदेश की चुनावी राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जहां सब यह मन कर बैठे हैं कि इस बार भाजपा सत्ता में आई तो वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री नहीं बन सकती, उन्हें यह एहसास नहीं है कि चुनाव के नतीजे ने कुछ भी ऐसा संकेत दिया कि वसुंधरा राजे के बिना 2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजे बीजेपी के लिए ठीक नहीं रहेंगे तो उनकी ताजपोशी फिर से हो सकती है.
लेकिन सवाल यह है कि राजस्थान की राजनीति में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे यह दो नाम ऐसे हैं जो समय-समय पर सत्ता में रहे हैं. गहलोत इस समय मौजूदा मुख्यमंत्री हैं और वसुंधरा पूर्व मुख्यमंत्री हैं. लेकिन क्या इस बार वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बन पाएंगी या यूं कहें कि क्या भाजपा फिर से सरकार में आ पाएगी?
वसुंधरा राजे को लंबे समय से बीजेपी दरकिनार करने की कोशिश कर रही है. लेकिन वसुंधरा है कि भाजपा नेतृत्व के सामने झुकने के लिए तैयार नहीं है और क्या बिना वसुंधरा को आगे किया बीजेपी गहलोत को सत्ता से हटा पाएगी यह देखना दिलचस्प होगा. क्योंकि तमाम सर्वे में ऐसा दावा किया जा रहा है कि इस बार राजस्थान में सरकार रिपीट होगी और हर बार सत्ता परिवर्तन का मिथक टूटेगा.