गुलाम नबी आजाद (Ghulam Nabi Azad) ने कांग्रेस छोड़ने के साथ जो इस्तीफा सोनिया गांधी को दिया है उस पत्र में उन्होंने पार्टी छोड़ने के लिए पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने सोनिया गांधी को संबोधित करते हुए लिखा है कि दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से जब राहुल गांधी की राजनीति में एंट्री हुई और विशेषकर जनवरी 2013 के बाद जब उन्हें आपके द्वारा पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया, पार्टी में परामर्श तंत्र का जो ढांचा था राहुल ने उसे ध्वस्त कर दिया. सभी वरिष्ठ और तजुर्बे कार नेताओं को किनारे लगा दिया गया और अनुभवहीन और चापलूस लोग पार्टी को चलाने लगे.
गुलाम नबी आजाद ने अपने इस्तीफे में लिखा है कि यूपीए-2 की सरकार के कार्यकाल के दौरान राहुल गांधी के द्वारा मीडिया के सामने एक सरकारी अध्यादेश को फाड़ा जाना उनकी और परिपक्वता का सबसे बड़ा सबूत है. जबकि उस अध्यादेश को कांग्रेस के कोर ग्रुप के सामने रखा गया था और उसे केंद्रीय कैबिनेट और राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकृति भी दी गई थी. राहुल गांधी के इस बचकाने व्यवहार ने प्रधानमंत्री और भारत सरकार की ताकत को पूरी तरह से नष्ट कर दिया. 2014 में यूपीए सरकार की हार में एक ही काम का सबसे बड़ा योगदान रहा.

सोनिया गांधी को दिए गए इस्तीफे में आगे गुलाम नबी आजाद ने लिखा है कि 2014 से आपके नेतृत्व में और उसके बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस दो लोकसभा चुनावों में बुरी तरह से हार गई. 2024 से 2022 के बीच हुए 49 विधानसभा चुनाव में से 39 में उसे हार का सामना करना पड़ा. पार्टी ने केवल 4 राज्यों में चुनाव जीता और छह राज्यों में वह गठबंधन सरकार में शामिल हो सकी. दुर्भाग्य से आज कांग्रेस केवल 2 राज्यों में शासन कर रही है और दो अन्य राज्यों में बेहद मामूली गठबंधन सहयोगी है. रिमोट कंट्रोल मॉडल ने यूपीए सरकार की संस्थागत अखंडता को ध्वस्त कर दिया और अब यह मॉडल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में लागू हो गया है.
अब पार्टी की वापसी संभव नहीं- गुलाम नबी आजाद
गुलाम नबी आजाद का कहना है कि पार्टी अब ऐसी अवस्था में पहुंच गई है जहां से वापस लौटना संभव नहीं है. उन्होंने कहा है कि अब कठपुतली की तलाश हो रही है, लेकिन ऐसा चुनाव हुआ व्यक्ति कुछ भी नहीं कर पाएगा. क्योंकि पार्टी तबाह हो चुकी है. उस व्यक्ति की डोर किसी और के ही हाथों में होगी. ऐसा समझा जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद का इशारा नए कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर है. उन्होंने कहा कि देश की राजनीति में हमने अपनी जगह बीजेपी के लिए और राज्यों में क्षेत्रीय दलों के लिए छोड़ दी है. राहुल गांधी पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी के शीर्ष पर एक ऐसे आदमी को थोप दिया गया है जो गंभीर नहीं है.

किस रणनीति पर गुलाम नबी आजाद काम कर रहे हैं, क्या यह राजनीतिक पैंतरेबाजी है?
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि आत्मा तो कब की अलग हो चुकी थी, आज शरीर ने भी गुलाम नबी आजाद के कांग्रेस का साथ छोड़ दिया. पिछले दिनों गुलाम नबी आजाद को मोदी सरकार ने पद्मभूषण से भी सम्मानित किया था इस पर कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि, सत्ता दुश्मन की भी हो तो उसके हाथों से मिला हर ईनाम कबूल है. पर अपनी ही पार्टी अगर मुश्किल में पड़े तो कांटो पर चलना नागवार है. कुछ राजनीतिक पंडित गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे के बाद बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं का जिक्र करते हुए कुछ उदाहरण दे रहे हैं जिसमें कहा जा रहा है कि, कुछ आडवाणी से सीखिये, मुरली मनोहर जोशी से सीखिये. इनको अलग थलग करके शाहजहां की तरह कैद किया गया. हर कुर्सी छीन ली गई. पर बीजेपी के किनारे किये गये ऐसे सैकड़ों नेताओं ने पार्टी नहीं छोड़ी, इस्तीफा नहीं दिया.
मीडिया में बताया जा रहा है कि गुलाम नबी आजाद का इस्तीफा कांग्रेस के लिए बड़ा झटका है. लेकिन राजनीतिक जानकारों का मानना है कि उनका इस्तीफा कांग्रेस के लिए कोई झटका नहीं है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह कोई आश्चर्यजनक घटना भी नहीं है, सब कुछ पहले से तय हो चुका है. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि गुलाम नबी आजाद आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर में अपनी नई पार्टी बनाने वाले हैं. जम्मू कश्मीर में विधानसभा चुनाव की हलचल भी हो रही है. जाहिर है उनके पार्टी बनाने से किसे फायदा होने वाला है, यह बताने की जरूरत नहीं है. जिस वक्त गुलाम नबी आजाद का राज्यसभा कार्यकाल खत्म हो रहा था उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यसभा में भाषण दिया था और उनकी आंखों में आंसू भी थे.