पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को तथा आम आदमी पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है. वहीं कांग्रेस के हाथों एक बार फिर से निराशा लगी है. कांग्रेस की हालत दिन-प्रतिदिन हर राज्य में लगातार खराब होती जा रही है जहां बीजेपी नहीं आ रही है वहां दूसरी क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस से आगे निकल रही हैं पंजाब भी कांग्रेस के हाथ से निकल चुका है.
पंजाब तो कांग्रेस के हाथ से निकलना ही था. जहां पिछले सालों से ही आम आदमी पार्टी पहले दिल्ली से ही पंजाबियों को लुभाने की कोशिश कर रही थी, फिर पंजाब में जी जान से पार्टी की सरकार बनाने के लिए मेहनत की. वहीं कांग्रेस के अंदर नेता पावर सेंटर की लड़ाई लड़ रहे थे, जनता से कटे हुए थे. पंजाब की समस्याओं से ज्यादा उन्होंने खुद का पावर बना रहे इसके लिए लड़ाई लड़ी. नतीजा सामने है. कांग्रेस पंजाब से साफ है, आम आदमी पार्टी ने परचम लहरा दिया है.
फ्री बिजली, पानी और महिलाओं को पैसे देने की स्कीम आम आदमी पार्टी के पक्ष में रही. वही कांग्रेस पंजाब के अंदर कई ध्रुवों में बटी हुई थी. पंजाब में कांग्रेस, पंजाब के प्रदेश स्तर के नेताओं के कारण हारी है. इसमें सबसे अधिक दोष नवजोत सिंह सिद्धू का है. नवजोत सिंह सिद्धू जब से पार्टी के अध्यक्ष बने उन्होंने पंजाब के अंदर कांग्रेस को एकजुट करके, कांग्रेस को मजबूत करके, सरकार बनवाने की जगह कांग्रेस को टुकड़ों में तोड़ दिया. जिसका नुकसान कांग्रेस ने आज उठाया है.
सिद्धू ने पंजाब में कांग्रेस की कई दशकों की मेहनत को मिट्टी में मिला दिया, आज यह बात सिद्ध हो गई. 84 के दंगों के बाद भी कांग्रेस पंजाब के अंदर इतनी कमजोर कभी नहीं दिखाई दी जो आज नजर आ रही है. इसके पीछे कहीं ना कहीं सिद्धू द्वारा पैदा की गई कॉन्ट्रोवर्सी दिखाई दे रही है.
नवजोत सिंह सिद्धू, चरणजीत सिंह चन्नी, सुनील जाखड़, मनीष तिवारी और जब कैप्टन अमरिंदर सिंह कांग्रेस में थे उस समय तक कांग्रेस के पंजाब के नेताओं ने कभी कांग्रेस को मजबूत करने के लिए एकजुट होकर पंजाब के अंदर काम नहीं किया. इसके पीछे कहीं न कहीं पावर सेंटर बनने की होड़ थी, जिसने आज कांग्रेस को पंजाब में सबसे बुरे दौर में लाकर खड़ा कर दिया.
जहां तक बात उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की है, तो सीटें भले कांग्रेस को नहीं मिली या कम मिली, प्रियंका गांधी की पिछले 6 महीनों की मेहनत जरूर दिखाई दे रही है. 2007 से 12 तक बहुजन समाज पार्टी की सरकार थी उत्तर प्रदेश में और मायावती मुख्यमंत्री थी, कांग्रेस कहीं ना कहीं बहुजन समाज पार्टी के आसपास आज खड़ी है उत्तर प्रदेश में. इसका श्रेय प्रियंका गांधी को दिया जाना चाहिए.
पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में यह भी दिखा है कि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पार्टी के लिए और विचारधारा के लिए लड़ाई लड़ रहे थे, पार्टी को मजबूत करने के लिए लड़ाई लड़ रहे थे, लेकिन कांग्रेस के दूसरे नेता, चाहे वह हरीश रावत हो, नवजोत सिंह सिद्धू हो या फिर उत्तर प्रदेश के कांग्रेस के नेता हो, सब पावर सेंटर की लड़ाई लड़ रहे थे.
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का संगठन नहीं था, प्रियंका गांधी ने कोशिश की संगठन खड़ा करने की उत्तर प्रदेश में. कांग्रेस को 2027 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ असर दिखाना है तो प्रियंका गांधी को लगातार उत्तर प्रदेश में सक्रिय रहना होगा. राहुल गांधी ने 2012 में उत्तर प्रदेश में काफी मेहनत की लेकिन बाद में उसका लाभ इसलिए नहीं मिला, क्योंकि राहुल गांधी उत्तर प्रदेश में सक्रिय नहीं रहे. प्रियंका गांधी को राहुल गांधी वाली गलती दोहराने से बचना होगा.
बाकी के राज्यों में भी कांग्रेस को वह सफलता मिलती हुई दिखाई नहीं दे रही है, इसके पीछे कहीं ना कहीं यह करण नजर आ रहा है कि, जनता की नजर में महंगाई, महामारी, बेरोजगारी और किसान आंदोलन जैसे मुद्दे उनसे जुड़े हुए नहीं थे. जनता को शायद धर्म की राजनीति पसंद आ रही है, भड़काऊ भाषण पसंद आ रहे हैं, विपक्षियों को बीजेपी के द्वारा डराने धमकाने की कला पसंद आ रही है.
2019 लोकसभा चुनाव की हार के बाद भी पार्टी के अंदर कोई कड़े फैसले नहीं हुए. अब राहुल और प्रियंका को पार्टी के अंदर जवाबदेही तय करनी होगी. इन चुनावों की हार से सबक लेकर आगे की रणनीति बनानी होगी. पावर सेंटर की लड़ाई लड़ने वालों को किनारे करना होगा लड़ाई मुश्किल जरूर है लेकिन लड़नी होगी.
आने वाले समय में गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव है और वहां भी हालत कांग्रेस की कुछ ठीक नहीं है. गुटबाजी चरम पर है. इन राज्यों में चुनावों से पहले अभी से राहुल और प्रियंका को रणनीति बनाकर सक्रिय होना होगा तभी इन राज्यों में कांग्रेस के सफलता मिल पाएगी.