उत्तर प्रदेश में तीसरे चरण का मतदान 20 फरवरी को होना है. इस दौर में कासगंज, एटा, हाथरस, मैनपुरी, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, कन्नौज, कानपुर नगर, कानपुर, देहात, औरैया, जालौन, हमीरपुर, महोबा, झांसी, ललितपुर और इटावा में मतदान होगा. इनमें से इटावा, औरैया, फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कन्नौज, कासगंज और फर्रुखाबाद को समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है.
समाजवादी पार्टी के गढ़ माने जाने वाले इन 8 जिलों में विधानसभा की कुल 28 सीटें हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इनमें से 22 सीटों पर अपना परचम लहराया था. समाजवादी पार्टी 6 सीटों पर सिमट गई थी. इसे सपा का गढ़ इसलिए कहा जाता है कि इन 28 में से करीब 20 सीटें ऐसी हैं जहां यादव और मुसलमान मतदाताओं की आबादी करीब 40 फ़ीसदी है.
2012 में समाजवादी पार्टी के 26 उम्मीदवार जीते थे उनमें से 10 यादव थे. वहीं 2017 में समाजवादी पार्टी ने 6 सीटें जीती थी उनमें से 4 यादव और 2 अनुसूचित जाति के थे. यादवों के बाद इस जिले में सबसे बड़ी आबादी शाक्य और लोध की मानी जाती है. बीजेपी ने 2017 में जो 22 सीटें जीती थी उनमें से 3 शाक्य, 3 लोध, 3 ब्राह्मण और 4 राजपूत थे.
यादव लैंड में बीजेपी की रणनीति
इस बार के चुनाव में बीजेपी और समाजवादी पार्टी के सामने अपना पिछला प्रदर्शन दोहराने की चुनौती है. इसी चुनौती से पार पाने के लिए अखिलेश यादव इस बार खुद मैनपुरी की करहल सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने उनके खिलाफ कभी मुलायम सिंह यादव के करीबी रहे एसपी सिंह बघेल को चुनाव मैदान में उतारा है. करहल के अलावा बीजेपी ने फिरोजाबाद की शिकोहाबाद सीट पर ओम प्रकाश निषाद, मैनपुरी की किशनी सीट पर अशु दिवाकर और फिरोजाबाद सिरसागंज सीट से हरिओम यादव को चुनाव मैदान में उतारा है.
बीजेपी इसे जहां अपनी रणनीति बता रही है. वहीं सपा नेता कहते हैं कि बीजेपी को उम्मीदवार नहीं मिले तो उसने सपा के पुराने नेताओं को मैदान में उतारा है. कुल मिलाकर “यादव लैंड”
में मुकाबला दिलचस्प नजर आ रहा है, जहां 2017 में बीजेपी ने बाजी मारी थी, वही उससे पहले यह समाजवादी पार्टी का गढ़ हुआ करता था. समाजवादी पार्टी अपना किला बचाने के लिए जी जान से लगी हुई है.
2019 में भी दरक गई थी यादव लैंड में सपा की जमीन
2019 के लोकसभा चुनाव की अगर बात की जाए तो बीजेपी ने उन सीटों पर भी समाजवादी पार्टी को शिकस्त दे दी थी जहां से यादव परिवार के लोग चुनावी मैदान में थे. ऐसा तब हुआ जबकि ढाई दशक की राजनीति और व्यक्तिगत दुश्मनी को ताक पर रखकर बहुजन समाज पार्टी भी उसके साथ खड़ी थी. दलित, यादव और मुसलमान एकजुट हो जाएंगे इस उम्मीद में सपा और बसपा ने गठबंधन किया था. दलित और मुसलमान तो एकजुट हो गए थे. लेकिन यादव परिवार के साथ यादव समुदाय ने हीं खेल कर दिया था.
क्या बीजेपी इस बार भी तोड़ पाएगी यादव लैंड का तिलिस्म?
“यादव लैंड” की 2 सीटें, मैनपुरी की करहल और उससे सटे इटावा जिले की जसवंतनगर सीट पर इस बार पूरे प्रदेश की नजर है. दोनों सीटें इस कारण अहम हैं क्योंकि करहल से अखिलेश यादव खुद विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं तो जसवंतनगर सीट से उनके चाचा शिवपाल सिंह यादव खड़े हैं. यह दोनों सीटें यादव परिवार का गढ़ मानी जाती है. माना जा रहा है कि इस बार अखिलेश यादव रिकॉर्ड तोड़ कर जीतेंगे.
बीजेपी अखिलेश यादव को उन्हीं की सीट से शिकस्त देने की मूड में है. अमित शाह करहल में जनता से अपील कर रहे हैं कि अखिलेश यादव को यहां से हरा दो पूरे प्रदेश से सपा का सूपड़ा साफ हो जाएगा. लेकिन ऐसा होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है. करहल में चर्चा इस बात की हो रही है कि जीत का मार्जिन क्या होगा.
बीजेपी को उम्मीद है कि जो काम स्मृति ईरानी ने अमेठी में किया था वही काम इस बार बघेल भी अखिलेश यादव को हराकर करेंगे. हालांकि इन दावों के विपरीत हकीकत यह है कि 2017 विधानसभा चुनाव में बीजेपी की लहर के बीच भी एसपी इस सीट को जीतने में सफल रही थी. फिर भी ओबीसी समुदाय से आने वाले एसपी सिंह बघेल को टिकट देकर बीजेपी ने राजनीतिक लड़ाई बनाने की कोशिश की है.
दूसरी सीट जसवंत नगर की है, जहां से शिवपाल सिंह यादव मैदान में है. 2017 में बीजेपी लहर के बावजूद 50,000 से अधिक वोटों से शिवपाल जीत कर आए थे. यहां 1980 से मुलायम सिंह यादव परिवार का ही प्रतिनिधि रहा है. 1993 तक खुद मुलायम सिंह यादव यहां से विधायक रहे. उसके बाद से लेकर शिवपाल यादव इस सीट पर लगातार जीत रहे हैं. इस सीट पर लगभग 38 फ़ीसदी यादव वोटर हैं, जो यहां जीत हार तय करते हैं.
बीजेपी की मुश्किल
उत्तर प्रदेश में पहले और दूसरे चरण में जाटलैंड और मुस्लिम बहुल सीटों पर मतदान हुआ. राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो पहले और दूसरे चरण की सीटों पर बीजेपी को आरएलडी और सपा के गठबंधन ने जबरदस्त टक्कर दी है और उसके लिए पिछले विधानसभा चुनाव जैसा प्रदर्शन दोहराना खासा मुश्किल है. इसके अलावा किसान भी बीजेपी को हराने की अपील कर चुके हैं. लेकिन देखना होगा कि इस चरण में यादव मतदाता फिर से बीजेपी का साथ देते हैं या फिर सपा के पाले में जाते हैं.
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बीजेपी को पिछले दो चरण के चुनाव में वह बढ़त नहीं मिली है जिसकी उसे उम्मीद थी. समाजवादी गठबंधन उससे आगे दिख रहा है. अगर बीजेपी को तीसरे चरण में “यादव लैंड” के अंदर बढ़त नहीं मिली तो बीजेपी के लिए सरकार बनाना 10 मार्च को मुश्किल हो सकता है. लेकिन “यादव लैंड” का मतदाता अगर अखिलेश यादव का साथ देता है तो अखिलेश यादव की सत्ता में वापसी की संभावनाएं बीजेपी से कहीं आगे निकल सकती हैं.