3 साल पहले भारतीय मुक्केबाजी की दिग्गज खिलाड़ी मैरीकॉम के खिलाफ टोक्यो ओलंपिक में चयन के लिए ट्रायल हारने के बाद निख़त जरीन (Nikhat Zareen) का मनोबल सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया था. मगर आसानी से हार ना मानने वाली तेलंगाना की इस मुक्केबाज ने सुनिश्चित किया कि वह एक बार फिर से मजबूत होकर वापस आए और पिछले ही हफ्ते उन्होंने इस्तांबुल में आयोजित विश्व मुक्केबाजी चैंपियन में स्वर्ण पदक जीत लिया.
निख़त जरीन (Nikhat Zareen) ने थाईलैंड की जितपोंग जुतामास को हराकर फ्लाईवेट में यह जीत हासिल की है. इस उपलब्धि ने न केवल उन्हें देश भर में एक सेलिब्रिटी बना दिया है बल्कि मैरीकॉम, जिन्हें जरीन अपना आदर्श कहती हैं, ने भी इस मुक्केबाज को बधाई देने के लिए ट्वीट का सहारा लिया.
तेलंगाना के निजामाबाद शहर में जन्मी 25 वर्षीय निख़त जरीन (Nikhat Zareen) ने एक मीडिया चैनल से बातचीत करते हुए अपने साक्षात्कार में बताया कि वह हमेशा से लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ना चाहती थी और यही कारण था कि उन्होंने मुक्केबाजी को अपनाया. वह एक सम्मान समारोह के सिलसिले में दिल्ली आई हुई थी. बता दें कि बॉक्सिंग मे अपना करियर बनाने से लेकर चैंपियनशिप जीतने तक उनका सफर आसान नहीं रहा है. इसके रास्ते में उन्होंने पितृसत्ता, सामाजिक दबाव, चोट समेत बहुत कुछ झेला है.
उनसे जब हिजाब विवाद को लेकर सवाल किया गया तो वह पसंद की आजादी में यकीन रखती हैं, ऐसा जवाब उन्होंने दिया. यह युवा मुक्केबाज पूरे देश में शांति और सद्भाव पर जोर देती हुई नजर आई. उन्होंने कहा कि मैं 10 साल की उम्र से ही एक एथलीट हूं. मेरे पिता भी एक खिलाड़ी थे. इसलिए वही मुझे प्रशिक्षण देते थे. एक बार वह मुझे पास के एक ही स्टेडियम में ले गए और मैंने महसूस किया था कि बॉक्सिंग के अलावा सभी खेलों में महिला खिलाड़ी होती है. मैंने अपने पिता से पूछा कि क्या महिलाएं बॉक्सिंग नहीं कर सकती?
उन्होंने आगे कहा कि मेरे पिता ने कहा कि महिलाएं कुछ भी कर सकती है. लेकिन यह दुनिया सोचती है कि महिलाएं मुक्केबाजी जैसा कठिन खेल नहीं खेल सकती. उनके उस वाक्य ने ही मुझे बॉक्सिंग चुनने के लिए प्रेरित किया और आज मैं बहुत खुश हूं कि मैंने बॉक्सिंग को चुना. क्योंकि मुझे लगता है कि मुझे ऐसा ही करना था. आज अगर मैं एक भी महिला को बॉक्सिंग के क्षेत्र में आने के लिए प्रेरित कर पाती हूं तो मुझे लगेगा कि मैंने अपना वास्तविक पदक जीत लिया है.