कांग्रेस हर बार चुनाव से पहले कुछ ना कुछ ऐसा कर देती है जिससे नतीजे उसके पक्ष की बजाय उसके खिलाफ हो जाते हैं. इस बार भी आने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के नेताओं ने खुद के लिए कुछ वैसा ही जाल बिछा दिया है या फिर कहें कि बिछाना शुरू कर दिया है.
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक कांग्रेस पिछले कुछ सालों से बीजेपी की तरह हिंदुत्व की राह पर चलने का एक गैर जरूरी और असफल प्रयास कर रही है. इस कड़ी में मध्यप्रदेश में फिर से वही गलती दोहराने का प्रयास शुरू कर दिया गया है मध्य प्रदेश के कांग्रेस के नेताओं की तरफ से. जबकि राहुल गांधी बार-बार हिंदू और हिंदुत्व का फर्क समझाते रहे हैं.
अगले साल यानी 2023 में मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. 2018 के चुनाव में कांग्रेस को वहां पर सत्ता मिल गई थी. लेकिन राजनीतिक उठापटक और सियासी वर्चस्व की लड़ाई में सिंधिया ने कांग्रेस को झटका दे दिया था और कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की सरकार औंधे मुंह गिर गई थी और बीजेपी की वापसी हो गई थी.
अमरिंदर की राह पर कमलनाथ?
सुनने को मिलता था कि कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में अपनी मनमानी चलाते थे. बाद में उन्हें सत्ता के साथ-साथ अपनी कुर्सी भी गंवानी पड़ी और कांग्रेस से भी बाहर का रास्ता दिखाया गया. पिछले कुछ वर्षों से कमलनाथ बीजेपी की पिच पर लगातार खेल रहे हैं. कुछ सालों से कमलनाथ सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर तेजी से बढ़ रहे हैं और उन्हें लगता है कि वह बीजेपी को इसमें मात दे देंगे. लेकिन वह एक असफल और कांग्रेस को पीछे धकेलने वाला प्रयास कर रहे.
पिछले चुनावों में कमलनाथ ने खुद को हनुमान भक्त की तरह प्रोजेक्ट किया था. राम मंदिर पर फैसला आने के बाद कांग्रेस कार्यालय में राम की बड़ी सी मूर्ति लगाई गई थी. इस बार फिर से मध्य प्रदेश कांग्रेस की तरफ से ऐसा आदेश जारी कर दिया गया है, जो खुद कांग्रेस के लिए मुसीबत बन सकता है.
दरअसल जो जानकारी निकल कर आ रही है उसके मुताबिक मध्य प्रदेश कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भगवान राम की कथा और रामलीला के साथ-साथ मध्य प्रदेश के सभी गांव, तहसील, शहर और कस्बों में हर छोटे-बड़े मंदिर में पूजा अर्चना करने के लिए कहा गया है. रामनवमी से शुरू हुआ यह कार्यक्रम हनुमान जयंती तक मंदिरों में भजन पूजन और सुंदरकांड समेत हनुमान चालीसा का पाठ करने के लिए सभी कार्यकर्ताओं को कहा गया है.
कांग्रेस हर बार यही पर मत खा जाती है. जिस मुद्दे पर कांग्रेस को आगे चलकर कोई नतीजा हासिल नहीं हो उस पर चलने का कोई मतलब ही नहीं बनता है. कांग्रेस खुद बीजेपी को ऐसा मौका देती है जिससे तमाम असली मुद्दे पीछे हो जाते हैं. कांग्रेस के नेता खुद राहुल गांधी की नहीं सुन रहे हैं. कांग्रेस के नेता हिंदुत्व की पिच पर खेल रहे हैं, जबकि राहुल गांधी हिंदुत्व की खुलकर आलोचना कर रहे हैं.
विचारधारा से समझौता ना करें कांग्रेस
अपने देवी देवताओं की पूजा अर्चना करना कोई गलत बात नहीं है. लेकिन कांग्रेस की राजनीति में एक विचारधारा रही है और उसी विचारधारा के आधार पर कांग्रेस ने लंबे समय तक देश में शासन किया है. पार्टी को अपनी विचारधारा से बिल्कुल भी भटकने की जरूरत नहीं है. क्योंकि वक्त जरूर इस समय कांग्रेस के पक्ष में नहीं है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि आने वाले दिनों में चीजें फिर से उनकी तरफ ना जाएं.
जब आप हिंदुत्व के मुद्दे पर खुलकर सामने आएंगे और बीजेपी को मात देने की कोशिश करेंगे तो उसमें कांग्रेस की जीत की संभावनाएं बहुत कम नजर आएंगी. क्योंकि बात जब हिंदुत्व की आती है तो बहुत सारे असली मुद्दे पीछे रह जाते हैं और बीजेपी हिंदुत्व को अपना राजनीतिक हथियार मानकर सबसे आगे निकल जाती है. कांग्रेस हिंदू और मुसलमान की राजनीति नहीं करती है, यही वजह है कि दोनों समुदाय के लोग पार्टी में सम्मान पाते हैं.
कांग्रेस को अगर आने वाले चुनावी राज्यों में सफलता हासिल करनी है, जहां पर बीजेपी से उसका सीधा मुकाबला है तो उसे जनता के मुद्दों पर चुनाव लड़ना होगा. अगर उन राज्यों के कांग्रेसी नेता अपने आप को हिंदुत्व के मुद्दे पर बीजेपी से आगे दिखाने की कोशिश करेंगे या फिर उसी के दम पर चुनाव प्रचार करेंगे तो कहीं ना कहीं कांग्रेस के हाथों निराशा लगेगी.