महंगाई, जीएसटी और बेरोजगारी जैसे बड़े मुद्दों को लेकर कांग्रेस शुक्रवार को सड़कों पर उतरी. कांग्रेस सांसदों ने राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकाला. लेकिन उन्हें विजय चौक पर रोक लिया गया. इस मार्च में कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सहित पार्टी के कई सांसद शामिल हुए. सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ ही कांग्रेस के सांसद भी काले कपड़े पहनकर मार्च में शामिल हुए थे, लेकिन पुलिस ने राहुल गांधी तथा अन्य सांसदों को हिरासत में ले लिया.
इससे पहले सोनिया गांधी तथा राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के तमाम सांसदों ने संसद भवन परिसर में भी प्रदर्शन किया और खाद्य पदार्थों पर जीएसटी को वापस लेने की मांग की. दूसरी ओर कांग्रेस मुख्यालय पर भी कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी के नेतृत्व में प्रदर्शन किया. प्रियंका के नेतृत्व में कांग्रेस कार्यकर्ताओं का जबरदस्त प्रदर्शन देखने को मिला. प्रियंका को बाद में पुलिस ने हिरासत में भी ले लिया, लेकिन वह बैरिकेड को तोड़कर पुलिस के साथ संघर्ष करती हुई आगे बढ़ती हुई दिखाई दी. प्रियंका गांधी सड़कों पर बैठी हुई भी दिखाई दी.
कुल मिलाकर आज का कांग्रेस का प्रदर्शन जबरदस्त दिखाई दिया कांग्रेस जनता के मुद्दों पर जबरदस्त संघर्ष करती हुई दिखाई दी. लेकिन सबसे खास बात यह थी कि इसमें गांधी परिवार के तीनों सदस्य शामिल थे. सड़कों पर संघर्ष का नेतृत्व भी गांधी परिवार के सदस्य कर रहे थे कहीं राहुल गांधी तो कहीं प्रियंका गांधी और इस तरह उन्होंने उन तमाम बातों को खारिज कर दिया जिसमें यह कहा जा रहा था कि कांग्रेस जनता के मुद्दों पर सड़कों पर नहीं उतरती.
पिछले दिनों जब राहुल गांधी और सोनिया गांधी से प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पूछताछ की गई उस समय भी कांग्रेस ने जबरस्त विरोध प्रदर्शन किया था, तब मीडिया चैनलों द्वारा यह प्रचारित किया गया था कि परिवार के खिलाफ अगर कुछ होता है तो कांग्रेसी एकजुट दिखाई देती है और प्रदर्शन करती है. जनता के मुद्दों पर कांग्रेस सड़कों पर उतरी हुई क्यों नहीं दिखाई देती? आज उन मीडिया चैनलों को जवाब शायद मिल गया होगा.
लेकिन सबसे बड़ा सवाल है कि क्या सच में ऐसा हो सकता है?
जनता के मुद्दों पर सड़कों पर उतर कर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन से पहले राहुल गांधी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस भी की थी, जिसमें उन्होंने जनता से जुड़े हुए तमाम मुद्दों पर और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर अपनी बात रखी थी और पत्रकारों के सवालों का जवाब दिया था. संस्थाओं को लेकर राहुल गांधी ने जो बात रखी थी उसका निचोड़ यह था कि, सुप्रीम कोर्ट, मीडिया और बाकी लोकतांत्रिक संस्थान सरकार के साथ खड़े हैं. राहुल की तरफ से इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा गया कि हिटलर भी चुनाव जीत जाता था उन्होंने कहा कि संस्थाएं सरकार के कब्जे में है.
राहुल गांधी ने कहा कि एक बार संस्थाओं को अपनी जिम्मेदारी का एहसास होना चाहिए और वह जनता के मुद्दों पर सरकार के साथ खड़ी हो जाए तो फिर मैं बताऊंगा चुनाव कैसे जीते जाते हैं. तो सवाल यह है कि क्या मीडिया जनता के मुद्दों पर विपक्ष के साथ खड़ी होगी सरकार से सवाल करेगी? बाकी जो दूसरी लोकतांत्रिक संस्थाएं डरी हुई सहमी हुई दिखाई दे रही हैं, वह सत्ता के दबाव को त्याग कर निष्पक्ष होकर अपना काम करेंगी और अगर करती हैं तो राहुल गांधी का कॉन्फिडेंस बता रहा है कि बीजेपी को सत्ता से बाहर होने में समय नहीं लगेगा. लेकिन क्या यह संभव है?
सरकार से मिलीभगत करके, सरकार के इशारे पर मीडिया कांग्रेस के खिलाफ कैंपेन चलाता है कि कांग्रेस जनता के मुद्दों को नहीं उठाती, परिवार के खिलाफ कुछ होता है तो कांग्रेसी सड़कों पर उतरते हैं. लेकिन आज जब जनता के मुद्दों पर कांग्रेस सड़कों पर संघर्ष कर रही है, कांग्रेस के बड़े नेता गिरफ्तारियां दे रहे हैं, उस वक्त यही मीडिया अलग तरीके के सवाल फिर से कांग्रेस के ऊपर ही उठा रहा है. जिस वक्त मीडिया को अपने दायित्वों का निर्वहन करना चाहिए उस वक्त मीडिया सत्ता के चरणों में नतमस्तक है. राहुल गांधी सही ही तो कह रहे हैं मीडिया अपना काम ठीक ढंग से नहीं कर रहा है.