पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) से अपील की है. लेकिन क्या इस अपील को एकनाथ शिंदे मानेंगे? यह सवाल खड़ा हो गया है. क्योंकि उद्धव ठाकरे की यह अपील कोई राजनीतिक अपील नहीं है, बल्कि मुंबई में एक मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट (Metro Car Shed Project) को लेकर है. शुक्रवार को शिवसेना भवन में हुई प्रेस कांफ्रेंस के दौरान उद्धव ठाकरे ने अपील की है कि मेट्रो कार शेड प्रोजेक्ट को आरे कॉलोनी (Aarey Colony) में शिफ्ट ना किया जाए.
इससे पहले गुरुवार को मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कैबिनेट की पहली ही बैठक में अधिकारियों को आदेश दिया है कि आरे कॉलोनी में मेट्रो रेल प्रोजेक्ट को लेकर रिपोर्ट पेश करें. इससे पहले उद्धव सरकार ने इस प्रोजेक्ट को आरे कॉलोनी से कंजूर्मार्ग में शिफ्ट कर दिया था. हालांकि बाद में यह मामला कानूनी दांवपेच में फस गया.
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने मीडिया से बातचीत में आरे कॉलोनी मेट्रो विवाद को लेकर बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि, बीजेपी मुंबई को इस तरह धोखा ना दे जैसे कि उन्हें दिया है. उद्धव ठाकरे ने कहा कि मेट्रो कार शेड को कंजूर्मार्ग से आरे कॉलोनी में शिफ्ट करने के प्लान से बहुत दुखी हैं. ठाकरे ने कहा कि मैं दुखी हूं, अगर आप मुझसे नाराज हैं तो मुझ पर निकालिए लेकिन मुंबई के दिल पर खंजर ना चलाइए.
क्या है आरे कॉलोनी?
आरे मुंबई शहर के अंदर बसा एक ग्रीनलैंड है. यहां लगभग 5 लाख पेड़ हैं. और यहां जानवरों और पक्षियों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं. इस स्थान की हरियाली की वजह से इसे ग्रीन लंग ऑफ मुंबई कहते हैं. शिवसेना का कहना है कि यहां मेट्रो कार शेड बनाने से पेड़ काटे जाएंगे. वहीं बीजेपी अब तक मानती है कि आरे ही एकमात्र वह जगह है जहां निर्धारित लागत और तय समय के अंदर मेट्रो शेड का निर्माण किया जा सकता है. शिवसेना इसको साल 2015 से ही आरे कॉलोनी से हटाकर दूसरी जगह शिफ्ट करने की मांग करती रही है. यह मामला मुंबई हाई कोर्ट तक पहुंच गया.
राहत पर टिकी सरकार, पलट सकता है तख्ता
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में बीजेपी के समर्थन से एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गए हैं. लेकिन सरकार बचाना शिंदे के लिए भी आसान नहीं है. कानूनी रूप से देखा जाए तो महाराष्ट्र की सरकार एडहॉक पर है, जो बागी विधायकों को सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम राहत पर टिकी हुई है. इस बीच शिवसेना के चीफ व्हिप ने नई अर्जी दायर करके सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि 16 विधायकों को वोट देने से रोका जाए. हालांकि इस पर भी 11 जुलाई को ही सुनवाई होनी है.
16 बागी विधायकों की सदस्यता रद्द करने और डिप्टी स्पीकर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. एक अन्य मामले में महाराष्ट्र के स्पीकर पद पर विवाद सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है. ऐसे में नए स्पीकर का चुनाव और सदन में बहुमत परीक्षण में बागी विधायकों को वोट देने पर न्यायिक विवाद की स्थिति बनी हुई है. अगर कोर्ट का फाइनल फैसला बागी विधायकों के पक्ष में नहीं आया तो सरकार का पासा पलट सकता है.
सबसे दिलचस्प बात यह है कि बागी विधायकों की संख्या के दम पर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने हैं और नए स्पीकर के चुनाव में भी उनके वोट काउंट होंगे. लेकिन आगे चलकर सुप्रीम कोर्ट के फाइनल फैसले के बाद विधायकों की सदस्यता पर आंच आई तो स्पीकर और मुख्यमंत्री दोनों की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है. 2019 में जल्दबाजी की वजह से 82 घंटे के भीतर ही देवेंद्र फडणवीस को इस्तीफा देना पड़ा था. इसलिए इस बार बीजेपी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. BJP नेतृत्व ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का ऐलान कहीं इसी वजह से तो नहीं किया? बीजेपी के इस फैसले के पीछे राजनीतिक के साथ-साथ कानूनी वजह भी बताई जा रही है. सरकार का सारा दारोमदार सुप्रीम कोर्ट के आखिरी फैसले पर टिका है.
कोर्ट में विचाराधीन केस में राज्यपाल द्वारा एकनाथ शिंदे को सीएम के तौर पर आमंत्रण से सरकार पर संकट बढ़ गया है. उद्धव खेमे के चीफ व्हिप के अनुसार जिन विधायकों के खिलाफ अयोग्यता मामले की सुनवाई चल रही है, उनके विधानसभा की कार्रवाई में शामिल होने पर प्रतिबंध लगाया जाए. उनका यह भी तर्क है कि उद्धव ठाकरे को शिवसेना के संगठनात्मक चुनाव में अध्यक्ष चुना गया था, इसलिए वही असली शिवसेना है.