मुगल (Mughal) जब हिंदुस्तान आए थे तो यह किसी ने नहीं सोचा था कि वह 300 वर्षों तक राज करेंगे. उससे पहले भारत पर बाहर से आए कई लुटेरों ने हमला किया था और भारत के वीर योद्धाओं ने उन्हें हराया भी था. मुगलों ने वीर भारतीय योद्धाओं और उनके साम्राज्य को हराया और उनकी सत्ता और पूरे भारत पर कब्जा किया.
बाबर ने भारत में मुगल (Mughal) साम्राज्य की स्थापना की थी और वह पहला मुगल सम्राट था. बाबर ने 1526 में हुए पानीपत युद्ध में लोदी वंश को हराकर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की थी. इसी युद्ध के बाद दिल्ली सल्तनत का भी अंत हो गया था और बाबर ने दिल्ली और आगरा पर कब्जा कर लिया था. बाबर ने भारत पर 5 बार हमला किया था. उसने 1519 में यूसुफजई जाति के खिलाफ भारत में अपना पहला संघर्ष छेड़ा था.
बाबर द्वारा स्थापित मुगल (Mughal) साम्राज्य अकबर, जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब के शासन काल तक खूब फला फूला. लेकिन औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य रूपी सूर्य धीरे-धीरे होने लगा. विशाल मुगल साम्राज्य पहले की तुलना में केवल छाया मात्र रह गया था. मुगल साम्राज्य रूपी वृक्ष की शाखाएं एक-एक कर टूटने लगी और आगे चलकर मुगल साम्राज्य धराशाई हो गया.
बाबर द्वारा स्थापित साम्राज्य विघटनकारी तत्वों के फल स्वरुप सड़ गया था. उसकी आत्मा पहले ही निकल चुकी थी. अंतिम जनाजा 1862 में बहादुर शाह जफर के साथ दफन हो गया. मुगल साम्राज्य के उदय का विवरण जितना रोचक और रोमांचक है, उसके पतन की कहानी उतनी ही दर्दनाक है.
Mughal राजतंत्र उत्तराधिकार के नियम का अभाव
मुगल (Mughal) राजतंत्र में उत्तराधिकार का कोई निश्चित नियम नहीं था. राजत्व खून के संबंध को नहीं पहचानता था. गद्दी तलवार के बल पर प्राप्त की जाती थी. बाबर ने उत्तराधिकार के नियम को निर्धारित करने की चेष्टा की. उसने अपने बड़े पुत्र हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर एक नई परंपरा की नींव डाली थी. उसने साम्राज्य के विभाजन का आदेश देकर अपने पुत्रों को संतुष्ट रखने का उपाय भी किया था. लेकिन हम आयु के दूसरे भाई उसके शत्रु ही बन गए.
इसके बाद अकबर हुमायूं का एकमात्र पुत्र था. फिर भी मिर्जा हकीम जैसे चचेरे भाई के विद्रोह को उसे दबाना पड़ा था. अकबर को जीवन के अंतिम समय में अपने एकमात्र जीवित पुत्र सलीम के विद्रोह का मुकाबला करना पड़ा. जैसी करनी वैसी भरनी का सबसे खूबसूरत उदाहरण जहांगीर का शासनकाल था. शाहजहां के विद्रोह ने जहांगीर के जीवन का अंतिम दिन कष्ट कर बना दिया था. शाहजहां को भी अपने जीवन काल के बीच युद्ध देखना पड़ा और अंत में अपदस्थ होकर उसने अपनी अंतिम सांस ली.
औरंगजेब को भी पुत्रों के विद्रोह का सामना करना पड़ा. शहजादा अकबर का विद्रोह किसका ज्वलंत प्रमाण है. मुगल शासकों के द्वारा जो दृष्टांत पेश किया गया उसका पालन औरंगजेब के उत्तराधिकारियों ने किया.
आपको बता दें कि औरंगजेब अपने पिता शाहजहां को कई सालों तक बंदी बनाने के बाद मुगल सिंहासन की राज गद्दी पर बैठा था. औरंगजेब मुगल वंश का इकलौता ऐसा शासक था जिसने 49 वर्ष भारत पर राज किया था. औरंगजेब ने अपने शासन काल में भारतीय उपमहाद्वीप के ज्यादातर हिस्सों पर अपने साम्राज्य का विस्तार किया था. उसने कई लड़ाइयां जीती थी, लेकिन वह मराठा साम्राज्य के संस्थापक छत्रपति शिवाजी महाराज से बुरी तरह हारा था.
औरंगजेब के कमजोर उत्तराधिकारी
मुगल (Mughal) साम्राज्य एकतंत्र शासन प्रणाली पर आधारित था. शासक के व्यक्तित्व और चरित्र के अनुसार साम्राज्य का विकास अथवा विनाश होता था. योग्य, अनुभवी और दूरदर्शी सम्राटों के युग में मुगल साम्राज्य का विकास अकबर से लेकर औरंगजेब तक हुआ. इन शासकों के प्रयत्न के फल स्वरुप मुगल साम्राज्य का विस्तार हुआ और साम्राज्य की सुरक्षा एवं प्रतिष्ठा पर कोई आंच नहीं आई. औरंगजेब की मृत्यु के बाद बहादुर शाह प्रथम से लेकर बहादुर शाह द्वितीय तक सभी मुगल शासक नामधारी शासक रह गए थे.
बाद के शासकों में इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता का अभाव था. बहादुर शाह प्रथम बुढ़ापे की अवस्था में गद्दी पर बैठा था. उसमें सफल शासक के सभी गुणों का अभाव था. अपने पुत्रों को अविश्वास की दृष्टि से देखता था. व्यवहारिक ज्ञान, कूटनीति और युद्ध कला की शिक्षा देने के बदले मुगल शहजादा शाही दरबार में रहकर रंग रंग में लिप्त रहते थे. यही कारण था कि औरंगजेब के बाद मुगल वंश में कोई योग्य शासक नहीं हुआ, जो विघटनकारी तत्वों पर नियंत्रण रखकर मुगल साम्राज्य को पतन से बचा सकता था.
विदेशी आक्रमण
मुगल (Mughal) साम्राज्य के आखिरी वक्त में असंतोष की भावना उफान पर थी. आंतरिक असंतोष का लाभ उठाने का प्रयास विदेशी आक्रमणकारियों ने किया. मुगल साम्राज्य का सैनिक अभियान असफल हुआ. पर्याप्त धन जन की हानि उठाने के बावजूद मुगल साम्राज्य में 1 इंच भूमि का विस्तार नहीं हुआ. इन असफलताओं से मुगलों की सैनिक कमजोरी स्पष्ट हो गई थी.
जब तक फारस गृहयुद्ध में उलझा रहा मुगल साम्राज्य पर कोई विदेशी आक्रमण नहीं हुआ. परंतु 1736 में गृह युद्ध से मुक्त होने के बाद नादिरशाह ने मुगल साम्राज्य की आंतरिक दुर्बलता का लाभ उठाकर सैनिक अभियान की तैयारी प्रारंभ कर दी. नादिरशाह ने 1738 में भारतीय सीमा में प्रवेश किया. उस समय मुगल सम्राट मुहम्मदशाह पर यह आरोप लगा था कि उसने फारस के राजदूत के साथ व्यवहारिक दुर्व्यवहार किया.
नादिर शाह को काबुल से लेकर पंजाब तक आने में कोई कठिनाई नहीं हुई. विलासी और अकर्मण्य मोहम्मदशाह की आंखें तब खुली जब वह पानीपत से 20 मील दूर करनाल में पहुंच चुका था. 1739 में मुगल सेना को बुरी तरह पराजित कर उसने मुहम्मदशाह को बंदी बना लिया. मोहम्मदशाह को बंदी बनाकर नादिरशाह दिल्ली पहुंचा. कुछ विरोधी तत्वों ने नादिर शाह की मृत्यु की झूठी खबर फैला कर कुछ फारसी सैनिकों को मार डाला. क्रोधित नादिरशाह ने दिल्ली में क’त्ले’आम की आज्ञा दी. नादिरशाह की क्रूरता और लूट से मुगल साम्राज्य की आर्थिक रीढ़ टूट गई और काबुल सिंध और पंजाब पर फारस वालों का अधिकार हो गयाा.
इसके अलावा मुगल साम्राज्य के पतन के कुछ और कारण
मुगल दरबार सदैव तीन भागों में विभाजित रहा. ईरानी, तूरानी और भारतीय मुस्लिम तीनों में आपसी संघर्ष था. उत्तर भारत में सिखों ने मुगलों से सत्ता छीन ली. पंजाब कश्मीर और उनके अधीन था और निरंतर युद्ध हो रहे थे.
मराठा साम्राज्य का उदय एक बड़ा कारण था, जिसने लगभग पूरे उत्तर भारत को मुगलों से स्वतंत्र दिलाई थी. औरंगजेब के समय दो मोर्चों पर युद्ध से और रोज बगावत से आर्थिक स्थिति बिगड़ गई, विशेष रूप से दक्कन युद्ध. औरंगजेब के बाद जितने भी मुगल बादशाह थे वह अधिकतर अय्याशी या नशे में डूबे थे. दरअसल मुगलों के अंत और ब्रिटेन का अंत और अमेरिका का होता पतन इन तीनों में ही एक समानता है. यह है एक साथ कई मोर्चों पर युद्ध लड़ना.