WHO

लगभग 10 महीनों से दुनिया भर में तांडव मचा रहे कोविड-19 वायरस यानी कोरोना पर पहली बार विश्व स्वास्थय संगठन (WHO) की गाइडलाइन से बाहर जाकर रूस ने कोरोना की वैक्सीन बनाई और अपने नागरिकों को उस वैक्सीन का मुफ्त टीकाकरण कर रहा.

रूस के बाद WHO को दूसरा झटका दिया इटली ने. इटली ने मृत कोरोना मरीज का पोस्टमॉर्टम, किया जिससे एक सनसनीखेज़ बड़ा खुलासा हुआ है. इटली विश्व का पहला देश बन गया है जिसनें एक कोविड-19 से मृत शरीर पर अटॉप्सी (पोस्टमॉर्टम) किया और एक व्यापक जाँच करने के बाद पता चला है कि वायरस के रूप में कोविड-19 मृत शरीर में मौजूद ही नहीं था, बल्कि यह सब एक बहुत बड़ा ग्लोबल घोटाला है.

इटली में हुए पोस्टमॉर्टम के अनुसार लोग किसी कोरोना वायरस के नहीं बल्कि असल में “ऐमप्लीफाईड ग्लोबल 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन (ज़हर)” के कारण मर रहे हैं. इटली के डॉक्टरों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कानून का उल्लंघन किया है, जो कि करोना वायरस से मरने वाले लोगों के मृत शरीर पर आटॉप्सी (पोस्टमॉर्टम) करने की आज्ञा नहीं देता. ताकि किसी तरह की वैज्ञानिक खोज व पड़ताल के बाद ये पता ना लगाया जा सके कि यह एक वायरस नहीं है, बल्कि एक वैक्टीरिया है जो मौत का कारण बनता है.

इस वैक्टीरिया की वजह से नसों में ख़ून की गाँठें बन जाती हैं. यानि इस बैक्टीरिया के कारण ख़ून नसों व नाड़ियों में जम जाता है और यही मरीज़ की मौत का कारण बन जाता है. इटली ने इस वायरस को हराया है और कहा है कि ये “फैलीआ-इंट्रावासकूलर कोगूलेशन (थ्रोम्बोसिस) के अलावा और कुछ नहीं है और इस का मुक़ाबला करने का तरीका आर्थात इलाज़ यह बताया है… ऐंटीबायोटिकस (Antibiotics tablets} ऐंटी-इंनफ्लेमटरी ( Anti-inflamentry) ऐंटीकोआगूलैटस ( Aspirin) को लेने से यह ठीक हो जाता है.

इटली का यह कदम संकेत है की इस बीमारी का इलाज़ सम्भव है. विश्व के लिए यह संनसनीख़ेज़ ख़बर इटैलियन डाक्टरों द्वारा कोविड-19 वायरस से मृत लाशों की आटॉप्सीज़ करके तैयार की गई हैं. कुछ और इतालवी वैज्ञानिकों के अनुसार वेन्टीलेटर्स और इंसैसिव केयर यूनिट (ICU) की कभी ज़रूरत ही नहीं थी. इस के लिए इटली में अब नए सिरे से प्रोटोकॉल जारी किए गए हैं.

इटली का दावा है कि चीन इसके बारे में पहले से ही जानता था मगर चीन की रिपोर्ट कभी किसी के सामने उसने सार्वजनिक नहीं की. इतालवी वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 के डर से लोग बाहर निकलें और यह जाने कि यह वायरस बिल्कुल नहीं है, बल्कि एक वैक्टीरिया मात्र है जो 5G रेडियेशन के कारण उन लोगों को नुकसान पहुँचा रहा है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम है. यह रेडियेशन इंफलामेशन और हाईपौकसीया भी पैदा करता है. जो लोग भी इस की जद में आ जायें उन्हें Asprin-100mg और ऐप्रोनिकस या पैरासिटामोल 650mg लेनी चाहिए.

पोस्टमॉर्टम जाँच में यह सामने आया है कि कोविड-19 ख़ून को जमा देता है, जिससे व्यक्ति को थ्रोमोबसिस पैदा होता है और जिसके कारण ख़ून नसों में जम जाता है. इसी कारण दिमाग, दिल व फेफड़ों को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती, जिसके कारण से व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है और सांस ना आने के कारण व्यक्ति की तेज़ी से मौत हो जाती है. इटली के डॉक्टर्स ने WHO के प्रोटोकॉल को नहीं माना और उन लाशों पर आटॉप्सीज़ किया जिनकी मौत कोविड-19 की वजह से हुई थी.

डॉक्टरों ने उन लाशो की भुजाओं, टांगों और शरीर के दूसरे हिस्सों को खोल कर सही से देखने व परखने के बाद महसूस किया कि ख़ून की नस-नाड़ियां फैली हुई हैं और नसें थ्रोम्बी से भरी हुई थी, जो ख़ून को आमतौर पर बहने से रोकती है और ऑक्सीजन के शरीर में प्रवाह को भी कम करती है जिस कारण रोगी की मौत हो जाती है. इस रिसर्च को जान लेने के बाद इटली के स्वास्थ्य मंत्रालय ने तुरंत कोविड-19 के इलाज़ प्रोटोकॉल को बदल दिया और अपने कोरोना पॉज़िटिव मरीज़ो को एस्पिरिन 100mg और एंप्रोमैकस देना शुरू कर दिया.

जिससे मरीज़ ठीक भी होने लगे और उनकी सेहत में सुधार नज़र आने लगा. इस तरीके की कामयाबी के बाद इटली स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक ही दिन में 14000 से भी ज्यादा मरीज़ों की छुट्टी कर दी और उन्हें उनके घरों को भेज दिया. स्रोत: इटली स्वास्थ्य मंत्रालय

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