Maharashtra crisis- महाराष्ट्र के राजनीतिक ड्रामे में जो तस्वीर उभरकर सामने आई है वह पूरी तरीके से चौंकाने वाली नहीं है. 2014 में मोदी और शाह के नेतृत्व वाली बीजेपी का ठाकरे परिवार द्वारा संचालित शिवसेना के साथ देश के सबसे बड़े वित्तीय केंद्र मुंबई और लोकसभा में दूसरा सबसे ज्यादा सांसद भेजने वाले राज्य का नियंत्रण के लिए संघर्ष चलता रहा है. लड़ाई अब अपने चरम पर है. मोदी और शाह की जोड़ी एक परेशान पूर्व साथी का सफाया कर के कुल वर्चस्व की अपनी महत्वाकांक्षा को साकार करने के लिए शिवसेना के बागी एकनाथ शिंदे को एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रही है.
मोदी और शाह की दूसरी योजनाओं की तरह इस ऑपरेशन को भी पूरी गोपनीयता के साथ तैयार किया गया था. देवेंद्र फडणवीस, सीआर पाटील और परेश पाटिल जैसे प्रमुख व्यक्तियों को जितनी आवश्यकता हो उतनी जानकारी दी गई. शीर्ष नेतृत्व 2 को ही पूरी जानकारी थी. इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी और शाह इस दौर को अंत तक लड़ने का इरादा रखते हैं. उद्धव ठाकरे के लिए यह दोनों हमेशा से कांटा थे. दिवंगत प्रमोद महाजन, अटल बिहारी वाजपेई और यहां तक कि लालकृष्ण आडवाणी के नरम व्यवहार के आदी ठाकरे के लिए गुजरात की इस जोड़ी का हावी हो जाने वाला रवैया पचा पाना मुश्किल हो गया है.
शिवसेना के महाराष्ट्र में वरिष्ठ सहयोगी रहने से महाजन, वाजपेई और आडवाणी संतुष्ट थे. वहीं इसके विपरीत मोदी और शाह चाहते हैं कि कमल हर जगह पूरी तरीके से खिले. 2014 में पहले ही विधानसभा चुनाव में जब वह राज्य में एक साथ लड़े तो बीजेपी ने यह सुनिश्चित किया कि शिवसेना का आकार छोटा हो. वहीं राज्य के पहले बीजेपी मुख्यमंत्री को स्थापित करने के लिए बीजेपी शीर्ष पर उभरी. उसके बाद दोनों पार्टियों के संबंध बद से बदतर होते चले गए.
2019 के विधानसभा चुनाव के बाद गठबंधन टूट गया और शिवसेना ने प्रतिद्वंदी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के साथ महाविकास आघाडी सरकार बनाने के लिए हाथ मिला लिया. यह मोदी और शाह को सीधी चुनौती थी. उन्होंने इस अपमान के लिए गठबंधन के सूत्रधार ठाकरे या एनसीपी के शरद पवार को माफ नहीं किया. अब बदले की बारी है. बीजेपी सत्ता में है और ठाकरे की गलतियों को याद दिलाते हुए दंड देने के लिए उसने बाला साहब ठाकरे का गुणगान करते हुए एक पूर्व शिवसैनिक को मुख्यमंत्री नियुक्त किया है.
लेकिन यह अल्पकालिक लाभ है. लंबे समय में बीजेपी को इस बात की उम्मीद है कि शिंदे की बगावत शिवसेना के अंत की प्रक्रिया शुरू कर देगी. शिंदे और ठाकरे के बीच यह साबित करने के लिए लड़ाई जारी है कि असली शिवसेना कौन और बाल ठाकरे की विरासत का असली उत्तराधिकारी कौन है? यह लड़ाई चुनाव आयोग, अदालत और अंततः मतदाताओं तक पहुंचेगी. बीजेपी इस बात की उम्मीद कर रही है कि लंबी चलने वाली यह लड़ाई दोनों को कमजोर कर देगी और शिवसेना का खात्मा कर देगी.
शिवसेना के खात्मे के बाद और पवार के बिना पार्टी का नेतृत्व करने के लिए एनसीपी के भविष्य के बारे में भी सवाल है. इन वजहों से बीजेपी के लिए भारत में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण राज्य पर शासन करने का रास्ता साफ होता जा रहा है. उत्तर प्रदेश पहले ही मुट्ठी में है. मोदी और शाह ने सोच लिया है कि बीजेपी बिना सहयोगी दलों के आगे बढ़ेगी. बिहार में मोदी और शाह लंबे समय से परेशान करने वाले एक और सहयोगी नीतीश कुमार को कमजोर करने में कामयाब रहे हैं.
नीतीश कुमार को नीचे गिराने के लिए इस जोड़ी ने 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान चिराग पासवान का इस्तेमाल किया था. लेकिन यह एक अलग मुद्दा है कि अपने उद्देश्य को हासिल करने के बाद दोनों ने चिराग को निकाल कर फेंक दिया और उनके चाचा को साथ कर लिया. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि एकनाथ शिंदे का अंजाम आने वाले महीनों में क्या होता है.