कांग्रेस को लगभग 24 साल बाद गांधी परिवार के बाहर का पार्टी अध्यक्ष मिला है. मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया है. उन्होंने अपने साथी और प्रतिद्वंदी शशि थरूर को बहुत बड़े अंतर से हराया है. 80 वर्षीय खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनाना कई मामलों में ऐतिहासिक है. बात चाहे 5 दशक बाद दलित कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने की हो या फिर दक्षिण भारत से आने वाले किसी नेता के छठी बार कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद तक पहुंचने की हो. देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी इस समय अपने इतिहास के जिस चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है, उसमें उसे जैसा अध्यक्ष चाहिए था वह उसे मिल गया.
मलिकार्जुन खड़गे ने जब पार्टी अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल किया था उस वक्त से ही कांग्रेस के बाहर ही नहीं भीतर भी कई लोगों ने मजाक बनाते हुए कहा कि 75 साल की सोनिया गांधी के उत्तराधिकारी 80 साल के खड़े होंगे. उनकी सेहत और उनके हिंदी बोलने को लेकर भी सवाल उठाए गए. प्रधानमंत्री मोदी से उनकी तुलना करते हुए कहा गया कि वह डायनेमिक नहीं है और ज्यादा मेहनत नहीं कर पाएंगे. यह भी कहा गया कि वह अध्यक्ष के रूप में गांधी परिवार के रिमोट से संचालित होंगे. इस तरह का सवाल उठाने में मीडिया में पीछे नहीं रहा. मल्लिकार्जुन खड़गे की छमता पर उन लोगों ने ही सवाल उठाए हैं और उठा रहे हैं जो उनकी पूरी राजनीतिक पृष्ठभूमि से अनजान है.
अध्यक्ष के रूप में एक तेजतर्रार नेता (Mallikarjun Kharge) मिला है
लोकसभा की बहसों में विचारों की जैसी स्पष्टता खड़गे में देखने को मिली है वह बेमिसाल है. चाहे संसदीय कार्यवाही हो या लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के नाते कामकाज हो, उन्होंने हर जगह छाप छोड़ी है. जहां जरूरत पड़ी वहां उन्होंने सभी विपक्षी पार्टियों के साथ तालमेल बनाया और नीतिगत तथा वैचारिक स्तर पर बीजेपी और उसकी सरकार को कटघरे में खड़ा किया. यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि खडके को अध्यक्ष के रूप में प्रधानमंत्री मोदी से नहीं लड़ना है या उनको चुनौती नहीं देनी है. उनको 2024 के चुनाव का नेतृत्व नहीं करना है.
सबको पता है यह काम राहुल गांधी करेंगे. लेकिन उससे पहले और उस समय के लिए भी कांग्रेस को एक ऐसे नेता की जरूरत है जो पार्टी आलाकमान के लिए आंख और कान का काम कर सके. कांग्रेस को अध्यक्ष के रूप में हर समय खुले रहने वाले एक मुंह की जरूरत नहीं है. इसलिए कांग्रेस को शशि थरूर, अशोक गहलोत या दिग्विजय सिंह की नहीं बल्कि खड़के की जरूरत थी. अगर कांग्रेस का अध्यक्ष देश के हर राज्य के नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए सहज उपलब्ध हो तो इतने से भी बहुत कुछ बदल जाएगा और खड़गे यह काम बखूबी कर सकते हैं. इस वक्त अध्यक्ष तो दूर पार्टी के महासचिव भी नेताओं और कार्यकर्ताओं से नहीं मिलते.
यह भी स्पष्ट है कि मलिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने के बाद भी कांग्रेस पर गांधी परिवार का दबदबा बना रहेगा. लेकिन इसमें आश्चर्य कैसा? गांधी परिवार कांग्रेस की जरूरत है. नेहरू गांधी परिवार पर कांग्रेस की निर्भरता के लिए राजनीतिक हलकों और मीडिया में अक्सर उसका मजाक भी उड़ाया जाता है. लेकिन हकीकत यही है कि नेहरू-गांधी परिवार ही कांग्रेस की असली ताकत है और वही इस पार्टी को जोड़ें रख सकता है. यह स्थिति ठीक वैसे ही है जैसे बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बीच का रिश्ता है. अगर बीजेपी से संघ को अलग कर दिया जाए तो बीजेपी के वजूद की कल्पना भी नहीं की जा सकती.
बीजेपी पर आने वाला है दबाव
बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा की स्थिति को देखा जा सकता है. कहने को जेपी नड्डा पार्टी के अध्यक्ष है लेकिन व्यावहारिक तौर पर पार्टी वैसे ही चल रही है जैसे अमित शाह के अध्यक्ष रहते चल रही थी. पार्टी का प्रचार करने, चुनाव लड़ने और संगठन चलाने का तरीका सब कुछ वैसा ही है जैसा अमित शाह के अध्यक्ष रहते चलता था. तो यह कहा जा सकता है कि जेपी नड्डा तो सिर्फ नाम मात्र के अध्यक्ष हैं और वह किसी चुनावी प्रक्रिया के जरिए भी अध्यक्ष नहीं बने हैं. कांग्रेस को बीजेपी सहित कई विरोधी दल इस बात पर घेरते थे कि यहां सिर्फ गांधी परिवार की चलती है और किसी भी मुद्दे पर आखरी सहमति परिवार का ही सदस्य देता है.
भले ही मल्लिकार्जुन खड़गे की छवि गांधी परिवार के विश्वासपात्र की है लेकिन उनके चुने जाने की प्रक्रिया लोकतांत्रिक है. इससे बीजेपी तथा दूसरे विपक्षी दलों पर दबाव बनेगा. दूसरी पार्टियां इस तरह के लोकतांत्रिक चुनाव का दावा नहीं कर सकती है. दूसरी पार्टियां चुने हुए को अध्यक्ष पद पर स्थापित करने की प्रक्रिया की औपचारिकता का पालन करती है. अब अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने जो प्रक्रिया अपनाई है उससे दूसरी पार्टियों पर भी ऐसे ही अध्यक्ष चुनाव करने का दबाव बनेगा और चुनावों के दौरान प्रधानमंत्री मोदी से लेकर बीजेपी के तमाम बड़े नेता गांधी परिवार पर हमले करके जनता को उनके खिलाफ करते थे, अब यह मौका कांग्रेस ने उनके हाथ से छीन लिया है.
परिवारवाद को लेकर कांग्रेस पर हमलों का असर नहीं होगा
कांग्रेस पर परिवारवाद का सबसे ज्यादा आरोप लगा है और इसे साबित करने के लिए विरोधी अब तक पार्टी अध्यक्ष पद पर परिवार की पकड़ के आंकड़ों को पेश करते हैं. लेकिन अब परिवार के बाहर मल्लिकार्जुन खड़गे के अध्यक्ष बनने से पार्टी के पास परिवारवाद के इस आरोप का मुकाबला करने का हथियार आ गया है. लेकिन पार्टी इसमें कितना सफल होगी यह आने वाले वक्त में कांग्रेस की रणनीति पर गौर करना होगा. जिस तरह से कांग्रेस अध्यक्ष पद की चुनावी प्रक्रिया चली है उसमें गांधी परिवार ने पूरी तरह से दूरी बनाए रखी.
हिंदी बेल्ट से अधिक दक्षिण के राज्यों पर कांग्रेस का फोकस
उत्तर भारत में बीजेपी की लोकप्रियता और प्रधानमंत्री मोदी के भाषणों के दम पर चुनाव जीतने की कला फिलहाल कम होती हुई दिखाई नहीं दे रही है. उत्तर भारत में बेरोजगारी चरम पर है. उद्योग धंधे ना के बराबर है. उसके बाद भी उत्तर भारत में बीजेपी की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है और हाल-फिलहाल उसमें कमी होगी इसकी उम्मीद कम है. ऐसे वक्त में कांग्रेस साउथ को एक मौके के तौर पर देख रही है. मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस अध्यक्ष बनना उसी दिशा में एक कदम साबित हो सकता है. गहलोत के पीछे हटने के बाद पार्टी आलाकमान दिग्विजय सिंह के नाम के साथ नहीं गया बल्कि साउथ से उम्मीदवार बनाया गया. अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में साउथ में कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन करती है तो यह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हो सकता है.
अभी गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. उसके बाद 2023 की शुरुआत में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे. लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे की असली परीक्षा अध्यक्ष के रूप में 2023 की गर्मियों में होगी, जब उनके अपने गढ़ कर्नाटक में चुनाव होंगे. कर्नाटक को जीतना कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वहां सरकार बनाने से 2024 के लोकसभा चुनाव में वित्तीय रूप से भी काफी मदद मिलेगी और 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कर्नाटक अगर कांग्रेस बीजेपी से छीन लेती है तो यह प्रधानमंत्री मोदी के लिए बड़ा झटका होगा.
दलित जब-जब कांग्रेस के साथ रहा है
चाहे बात देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के दौर की हो या फिर डॉ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकारों की हो, कांग्रेस को सत्ता में रखने में दलित वोटरों का योगदान रहा है. एक जमाने में दलित कांग्रेस का सबसे मजबूत वोट बैंक हुआ करता था. लेकिन पिछले कुछ चुनावों के नतीजे बताते हैं कि यह वोट पार्टी से नाराज है और दूर चला गया है. अब पार्टी मलिकार्जुन खड़गे जैसे बड़े दलित नेता को अध्यक्ष पद देकर इस समूह को बड़ा संदेश देने की कोशिश कर रही है. माना जा रहा है कि बीजेपी ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति बना कर जो पत्ता फेंका है मल्लिकार्जुन खड़गे अध्यक्ष बन कर कांग्रेस को उसकी काट निकालने में मदद कर सकते हैं. अगर ऐसा होता है तो यह भी बीजेपी के अरमानों पर पानी फेर सकता है 2024 के लोकसभा चुनाव में.