उत्तर प्रदेश में लगभग स्पष्ट हो चुका है कि बीजेपी एक बार फिर से पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी कर रही है वहीं. दूसरी तरफ अगर देखा जाए तो अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी और उसके गठबंधन को पिछली बार के मुकाबले जबरदस्त फायदा मिला है. साल 2017 के चुनाव में सपा बहुत बुरी तरह हार गई थी.
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने इस विधानसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने का दावा किया था. इसमें कोई शक नहीं है कि समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष ने जबरदस्त लड़ाई की है. यह दूसरी बात है कि उन्हें विपक्ष में बैठकर 5 साल और इंतजार करना होगा. क्योंकि लड़ाई तो कि उन्होंने लेकिन लड़ाई की शुरुआत देर से की.
अनजाने में BJP की मदद कर बैठे अखिलेश
चुनाव आयोग ने जिस वक्त उत्तर प्रदेश के चुनाव को सात चरणों में करवाने का ऐलान किया था उसी वक्त से पश्चिम से पूर्वांचल की तरफ होने वाले चुनाव के पीछे की वजह को तलाशा जाने लगा था. मुस्लिम बहुल पश्चिम से पूरब की ओर चुनाव जाने का मकसद दो ध्रुवीय रूप देना था. अनजाने में अखिलेश भी इसमें मदद कर गए. बीजेपी नेताओं के अभियान को देखें तो पहले दो चरण तक उनके निशाने पर समाजवादी पार्टी रही.
विपक्षी दल में होने के बावजूद बीजेपी के नेताओं की तरफ से, खासकर गृह मंत्री अमित शाह की तरफ से जयंत चौधरी पर हमला नहीं किया गया. मायावती के ऊपर किसी तरह के हमले नहीं किए गए. लेकिन अखिलेश को लगा कि चुनाव दो ध्रुवीय होगा तो बीजेपी से टक्कर में उन्हें सीधा फायदा मिलेगा.
अखिलेश यादव ने क्या किया? बहुजन समाज पार्टी और खास तौर पर कांग्रेस पर बीजेपी के पक्ष में सपा को हराने की साजिश का आरोप लगा दिया. अब इसके नतीजे सामने हैं. चुनाव दो ध्रुवीय है. मगर यही चीजें अखिलेश को नुक़सान कर गई. दो ध्रुवीय चुनाव हिंदू-मुसलमान का हो गया. समाजवादी पार्टी का वोट तो बढ़ा बावजूद वह पीछे है. बीजेपी का वोट बैंक उसके साथ बना रहा.
मुद्दों पर फेल हुए अखिलेश
ऐसा नहीं है कि जमीन पर बीजेपी के खिलाफ मुद्दे नहीं थे. बीजेपी के खिलाफ मुद्दों की भरमार थी. लोगों में नाराजगी भी खूब थी. लेकिन अखिलेश यादव के नेतृत्व में उनका गठबंधन लोगों को भरोसा नहीं दे पाया. अगर ऐसा कहें कि अखिलेश दिमाग पर तो असर डाल रहे थे, लेकिन दिल नहीं जीत पाए तो गलत नहीं होगा. अखिलेश को लगा कि कांग्रेस या बसपा से जो दलित पिछड़ा वोट टूटेगा वह स्वाभाविक रूप से बीजेपी के पास जाने की बजाय सपा के पास आ जाएगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दिल जीतने वाला संवाद जनता से नहीं बना पा रहे थे अखिलेश.
कहीं ना कहीं अगर बीजेपी राज्य की कानून व्यवस्था का मुद्दा उठ रहा था, तो दो ध्रुवीय चुनाव होने के कारण सामने समाजवादी पार्टी थी और समाजवादी पार्टी के दौर में कानून व्यवस्था की क्या हालत थी, समाजवादी पार्टी की सरकार को खुद गुंडाराज के नाम से मीडिया तथा बीजेपी बदनाम करती थी, जनता के दिमाग में यह बात भी थी.
कहीं ना कहीं ओबीसी और दलित पूरी तरीके से अखिलेश के साथ ना आकर सीधा बीजेपी के पास चले गए. समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने चुनाव की घोषणा के साथ ही मान लिया था कि उनकी सरकार बन गई है, चुनाव बाद हिसाब बराबर करने की चर्चाएं होने लगी थी. इससे लोग बीजेपी के पक्ष में संगठित हो गए.
जिस तरह से प्रियंका गांधी ने माहौल बनाया था अगर उस तरीके से शुरुआत अखिलेश यादव ने की होती तो आज नतीजे कुछ और होते प्रियंका के पास संगठन नहीं था अखिलेश के पास संगठन था, लेकिन चूक गए. प्रियंका लगातार जनता से संवाद तो कर रही थी, लेकिन जनता के दिमाग में कहीं ना कहीं था कि कांग्रेस सरकार नहीं बना सकत, तो जनता ने कांग्रेस को पूरी तरीके से नकार दिया. लेकिन अखिलेश संवाद स्थापित नहीं कर पाए.