मोहम्मद जुबैर (Mohammed Zubair) की गिरफ्तारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस दीपक गुप्ता (Retired Justice Deepak Gupta) ने सबसे पहले दिल्ली पुलिस पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने कहा है कि धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में मोहम्मद जुबैर पर कार्रवाई हो गई, लेकिन नूपुर शर्मा पर नहीं हुई. जबकि नूपुर शर्मा ने पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी की जिससे ज्यादा हिंसा भड़क सकती है.
दीपक गुप्ता के मुताबिक यही वजह दिल्ली पुलिस की निष्पक्षता पर बड़े सवाल खड़े करती है. रिटायर्ड जज ने साफ कहा है कि जिस तरह से मोहम्मद जुबैर को गिरफ्तार किया गया उसमें कुछ गड़बड़ है. जुबेर को एक फिल्म में दिखाए गए साइन बोर्ड को ट्विटर पर शेयर करने को लेकर गिरफ्तार किया गया है. इसे लेकर दीपक गुप्ता ने कहा कि 40 साल तक किसी ने फिल्म के बारे में कोई शिकायत नहीं की और अब कैसे एक अज्ञात शिकायतकर्ता के कहने पर फिल्म में दिखाए गए साइन बोर्ड के लिए जुबैर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गई.
जस्टिस दीपक गुप्ता इस बात को लेकर भी हैरान थे कि एक अज्ञात शिकायतकर्ता की कहने पर कैसे तेजी से पुलिस ने एफआईआर दर्ज करके मामले की जांच शुरू कर दी. उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि लोगों को शिकायत दर्ज कराने में तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट में हम ऐसे मामले देखते हैं जिनमें महिलाओं ने बलात्कार की शिकायत की है और उनका मामला दर्ज नहीं किया जाता है. लेकिन यहां अज्ञात शिकायतकर्ता के कहने पर मामला दर्ज हो गया.
मोहम्मद जुबैर को जमानत न मिलने के सवाल पर जस्टिस दीपक गुप्ता ने कहा कि छोटे मामलों में भी मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत देने से डरना एक बड़ी चिंता का विषय है. जब कोई मामला लोगों की नजर में होता है तो मजिस्ट्रेट जमानत देने को लेकर और ज्यादा सतर्क हो जाते हैं. जुबैर के मामले में दिल्ली पुलिस ने उनके इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जप्त कर उन्हें जांच के लिए भेज दिया, इसे लेकर जस्टिस गुप्ता ने कहा है कि जुबैर की चिंता लाजमी है. उनके मुताबिक पत्रकार और वकील ही नहीं बल्कि कोई आम नागरिक भी नहीं चाहेगा कि उनके इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स को बिना वजह जप्त कर लिया जाए. सभी को गोपनीयता की चिंता रहती है.