कहने को तो कांग्रेस ने पंजाब की गुत्थी सुलझा कर बड़ा संदेश दिया था लेकिन क्या वास्तव में ऐसा हुआ, शायद नहीं. कांग्रेस का प्रथम परिवार मन के मुताबिक कुछ नहीं कर पाया था और वह जो करने को मजबूर हुआ उसे उंगली कटा कर शहीद होना कहा जाता है. वस्तुतः पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) ने शतरंज की चालें तो ऐसी चलीं थी कि सोनिया, राहुल और प्रियंका को सिद्धू की ताजपोशी करने का फरमान ही सुनाना था.
यदि कैप्टन अमरिंदर सिंह का विरोध ना होता तो विधायकों की बैठक में ही सिद्धू नेता चुन लिए जाते लेकिन हरीश रावत और अजय माकन ने जब 18 सितंबर को प्रेस को संबोधित किया था तभी समझ में आ गया था कि कुछ ऐसा फेरबदल होने जा रहा है जो किसी भी कीमत पर अमरिंदर सिंह (Amarinder Singh) के मंतव्य के विरुद्ध नहीं जा सकता था. विगत 18 जुलाई को अध्यक्ष बनने के बाद से सिद्धू ने जो किलाबंदी की थी वह यही थी कि कैसे भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटवा कर खुद मुख्यमंत्री बनें लेकिन कैप्टन ऐसे राजनेता हैं जिन्होंने अपने जीवन के 52 साल राजनीति में गुजारे हैं.
यही नहीं वे राजीव गांधी और गांधी परिवार के निकट भी रहे हैं.इसलिए वे कमोबेश कांग्रेस के प्रथम परिवार की राजनीति पर ज्यादा समझ रखते हैं. वस्तुतः जब कांग्रेस विधायक दल की बैठक आयोजित हो रही थी जिसकी जानकारी कैप्टन अमरिंदर सिंह को नहीं दी गई थी तभी कैप्टन समझ गए थे कि उन्हें चलता करने की सारी स्क्रिप्ट लिख दी गई है और उन्हें सही मायने में अपमानित कर पद से हटाया जाएगा. ऐसी स्थिति में उन्होंने राज्यपाल के पास जाकर स्वयं इस्तीफा देना ज्यादा मुनासिब समझा.
इस्तीफा तो कांग्रेस आलाकमान चाहता ही था किंतु आलाकमान जो और चाहता था वह सिद्धू की ताजपोशी करना था किंतु मंजे हुए राजनीतिक खिलाड़ी की तरह कैप्टन अमरिंदर सिंह ने एक गुगली में सिद्धू को बोल्ड आउट कर दिया. इस्तीफे के तुरंत बाद जो महत्वपूर्ण काम कैप्टन ने किया वह प्रेस को संबोधित करना था. उनके शब्दों पर ध्यान दें तो उन्होंने प्रेस से कहा- मैंने राज्यपाल को अपना इस्तीफा सौंप दिया है. अब कांग्रेस जिसे चाहे मुख्यमंत्री बनाए. लेकिन मैं सिद्धू के मुख्यमंत्री बनाने का विरोध करूंगा क्योंकि सिद्धू राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए किसी खतरे से कम नहीं हैं. पंजाब की 600 किलोमीटर की सीमा पाकिस्तान से सटी हुई है. यहां ड्रोन से पाकिस्तान से हथियार आते हैं, नशीले पदार्थ आते हैं.
कैप्टन ने कहा- सिद्धू पाक प्रधानमंत्री इमरान के दोस्त हैं. वह बाजवा के गले मिलते हैं. ऐसे में पंजाब सुरक्षित नहीं है. मैंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दिया है किंतु कांग्रेस नहीं छोड़ी है. यदि कांग्रेस सिद्धू को मुख्यमंत्री बनाती है तो मैं इसका विरोध करूंगा. इस प्रेस संबोधन के बाद विधायक दल की बैठक में जहां सिद्धू का नाम चुना जाना था कैप्टन अमरिंदर सिंह के बयान के बाद निश्चित ही हाईकमान ऐसी रिस्क नहीं ले सकता था कि सिद्धू की पाकिस्तान के उच्चतम पदाधिकारी व्यक्तियों से दोस्ती का दुष्प्रभाव और राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ के आरोपों का प्रभाव आसन्न विधानसभा चुनावों पर पड़ता.
फलतः तत्काल अजय माकन और हरीश रावत ने प्रेस से यह कहकर कि विधायकों ने विधायक दल के नेता के चयन के लिए निर्णय सोनिया जी पर छोड़ दिया है, कल तक नाम घोषित हो जाएगा फैसला टाल दिया जिससे सिद्धू की ताजपोशी पर ग्रहण लग गया. वस्तुतः अमरिंदर सिंह की इस सधी हुई चाल ने सिद्धू के अरमानों पर पानी फेर दिया. इसके बाद हाईकमान ने सुखजिंदर सिंह रंधावा को मुख्यमंत्री बनाने की पेशकश की किंतु सिद्धू नहीं चाहते थे कि रंधावा को मुख्यमंत्री बनाया जाए क्योंकि रंधावा सिद्धू के अनुरूप नहीं थे. कुल मिलाकर सिद्धू ने जब समझ लिया कि अब वे मुख्यमंत्री नहीं बन सकते तब उन्होंने चरणजीत सिंह चन्नी का नाम आगे किया जिस पर आलाकमान ने मोहर लगा दी.
क्योंकि सिद्धू मुख्यमंत्री नहीं बन सकते थे तो उन्होंने सोचा था कि चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर वे सुपर मुख्यमंत्री की भूमिका में आ जाएंगे और एक रबर स्टैंप की तरह चन्नी से जो चाहेंगे वह करा लेंगे. किंतु आज के युग में रबर स्टैंप बनने वाला कोई नहीं है. हर एक व्यक्ति सम्मान से न केवल जीना चाहता है बल्कि पद के महत्व को समझता है. फलतः सिद्धू के अरमान को पलीता तब लग गया जब उनकी मर्जी के विरुद्ध चन्नी ने सुखजिंदर सिंह रंधावा को गृह मंत्रालय सौंप दिया. यही नहीं चन्नी ने प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति में भी सिद्धू की मर्जी के विरुद्ध फैसले लिए. जब सिद्धू को यह एहसास हो गया कि चन्नी भले ही चुनावों तक मुख्यमंत्री हैं किंतु यदि कांग्रेस पंजाब में दोबारा सत्ता प्राप्त करने की स्थिति में आती है तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर पहला अधिकार चन्नी का ही रहेगा और चूँकि कांग्रेस ने धूम-धड़ाके के साथ यह घोषणा की है कि उसने पहले दलित मुख्यमंत्री को पंजाब में नियुक्त किया है तो वह अपने कदम वापस नहीं खींच सकती थी.
ऐसी स्थिति में सिद्धू की ताजपोशी किसी भी स्थिति में संभव नहीं थी. कांग्रेस जीतती या हारती दोनों ही स्थितियों में सिद्धू का मुख्यमंत्री बनना संभव नहीं था. यही सोच कर सिद्धू ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया. वस्तुतः सिद्धू का उद्देश्य पंजाब कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनना नहीं था बल्कि उनकी महत्वाकांक्षा प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की थी जिस पर ग्रहण लग चुका था. सिद्धू ने अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सबसे पहले पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ को पद से हटाकर खुद अध्यक्ष बने फिर उन्होंने कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर मुख्यमंत्री की राह प्रशस्त की किंतु वे इसमें सफल नहीं हो सके. क्योंकि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताकर एक गुगली में बोल्ड आउट कर दिया.
सिद्धू के हाथ कुछ नहीं आया. सिद्धू एक आत्म प्रशंसक, अहम वादी और अति महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं. वह हमेशा अपने आप को नेतृत्व के शिखर पर देखना चाहते हैं किंतु उनके जो कदम होते हैं वह आत्मघाती ज्यादा होते हैं सिद्धू ने अध्यक्ष बनने के बाद जो भी कदम उठाएं वे सब कांग्रेस संगठन के लिए घातक ही हुए. यही नहीं अपना इस्तीफा सौंप कर उन्होंने कांग्रेस के प्रथम परिवार की निर्णय क्षमता पर भी प्रश्नवाचक चिन्ह अंकित कर दिया. निश्चित ही कांग्रेस हाईकमान ने सिद्धू को लेकर जितने भी निर्णय किए हैं वह सब गलत ही साबित हुए हैं.
सिद्धू ने पूरी पंजाब कांग्रेस को दो फाड़ कर अपने चरित्र के अनुसार ही काम किया है. सिद्धू के स्तीफे के बाद कप्तान अमरिंदर सिंह की टिप्पणी मायने रखती है जिसमें उन्होंने कहा कि- मैं पहले से कह रहा था कि सिद्धू एक अस्थिर व्यक्ति हैं. निश्चित ही कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू को लेकर जो धारणाएँ बनाई होंगी वे सब उनके स्तीफे के बाद धराशाही हो गई होंगी. कांग्रेस ने अगर कप्तान की बातों को नजर अंदाज न किया होता और उनको ससम्मान पद से हटाया होता तो प्रथम परिवार की ज्यादा प्रशंसा होती. आज की स्थिति में सिद्धू ने पंजाब में कांग्रेस की स्थिति को कमजोर कर दिया है.