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आज यह सवाल हर किसी के मन में है कि अब क्यों नहीं पूछता है भारत?  देश मे कल कोरोना के 1 लाख से ऊपर मामले सामने आए हैं और यदि पिछले एक हफ्ते का आंकलन किया जाय तो प्रतिदिन के हिसाब से औसतन 72 हजार मामले सामने आ रहे हैं.

कोरोना का संक्रमण देश मे जिस गति से बढ़ रहा है, उससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आनेवाले समय मे देश के करोड़ों लोग कोरोना की चपेट में होंगे. सवाल यह उठता है कि मुसीबत के इस भयावह दौर में हमारी सरकार की भूमिका क्या होनी चाहिए और वास्तविकता में क्या है?

दो जून की रोटी के लिए अपने घर से हजारों किलोमीटर दूर मेहनत मजदूरी कर रहे व्यक्ति को जब घर वापसी के लिये मजबूर होना पड़ा तब सरकार ने उसकी क्या मदद की? भूख से बिलबिलाते छोटे-छोटे बच्चे जब 48 डिग्री के तापमान से अपने नन्हे पैरों को झुलसा रहे थे तब सरकार कहाँ खड़ी दिखाई दी?

4 माह से घरों में कैद लोगों के लिए 20 लाख करोड़ का पैकेज धरातल में किसी को कहीं दिखाई दे रहा है क्या? क्या हम और आप अपने जिले की स्वास्थ्य सुविधाओं से संतुष्ट हैं? कोरोना के इस दौर में सबसे बड़ी मार झेल रहा मध्यम वर्ग क्या टूटता हुआ नजर नहीं आ रहा है?

रिया चक्रवर्ती और कंगना रानौत की खबरों से सरकार और मीडिया की अपने पापों पर पर्दा डालने की कोशिश आखिर कब तक जारी रहेगी? देश की जनता में जब हाहाकार मचा हो, ऐसे नाजुक दौर में राष्ट्रीय पक्षी के साथ 6 बार कपड़े बदलकर, 8 एंगल से फोटो खिंचवाना और फिर उसे पूरी बेशर्मी से देश की जनता को परोसना क्या जिम्मेदार मुखिया की पहचान हो सकती है?

क्या मुखिया की हरकतों से यह नहीं लग रहा की हमारा मुखिया चाहे जो भी हो उसकी योग्यता (डिग्री) की जानकारी प्रमाणपत्रों के साथ देश की जनता को होनी ही चाहिए? जब चीन हमे आंख दिखाता है तो हम सुशांत राजपूत की आत्महत्या या हत्या को देखते हैं.

जब GDP गिरती है तो हम सीमा पर तनाव देखते हैं, जब बेरोज़गारी के खिलाफ़ आवाज उठती है तो हम एक पक्षी के साथ मुखिया की कई पोजों को तस्वीरें देखते हैं. इस तरह के षड्यंत्रों के दम पर सरकार चलाने का खेल आखिर कब तक जारी रहेगा ?? ये सब आखिर क्यों नहीं पूछता है भारत….

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