Sharad Pawar45697

उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी (Lakhimpur Kheri) में हुई नृशंस घटना के बाद शरद पवार (Sharad Pawar) ने तय कर लिया लगता है कि अब भारतीय जनता पार्टी के साथ आर-पार की लड़ाई जरूरी है. 2014 से 2019 के बीच उन्होंने बीजेपी को थोड़ी-बहुत छूट दी हुई थी. इसका ही फायदा उठाते हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने उनकी पार्टी के काफी सारे नेताओं-कार्यकर्ताओं को अपने दल में शामिल कर लिया था.

पवार की पार्टी- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के सेकुलर नेताओं ने इस पर कहा भी था कि पवार के कुछ बीजेपी नेताओं के साथ निहायत ही व्यक्तिगत रिश्ते उनके वोटर आधार को प्रभावित कर रहे हैं. वह टर्निंग प्वाइंट था जब केंद्र ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का उनके खिलाफ इस्तेमाल किया. पर महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के गठन के बाद भी पवार ने इन व्यक्तिगत रिश्तों को अहमियत दी. इससे मतदाताओं में विरोधाभासी संकेत गए.

एनसीपी मुख्यतया किसानों की पार्टी है और निश्चित तौर पर वह नहीं चाहेगी कि लखीमपुर खीरी नृशंस कांड के बाद बीजेपी को बिना विरोध ही आराम से निकल जाने दिया जाए. ऐसा लगता है कि खास तौर पर इस कांड के बाद पवार को अंदाजा हो गया है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में बीजेपी बेहतर करने की स्थिति में नहीं है और यह देश भर से बीजेपी की विदाई की शुरुआत हो सकती है. वैसे भी, एनसीपी और बीजेपी के बीच लड़ाई की और रेखाएं भी खिंची हुई हैं.

केंद्र ने अक्तूबर के पहले हफ्ते में आयकर छापों के जरिये पवार के भतीजे अजित पवार, उनके परिवार और दोस्तों पर दबाव बनाने की कोशिश की है. वित्त विभाग भी देख रहे उप मुख्यमंत्री अजित पवार इस वजह से गुस्से से लाल हैं. पिछली बार जब अजित पवार ने तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के साथ मिलकर सरकार बनवाई थी, उस समय उनके खिलाफ सभी मामले वापस ले लिए गए थे. वह एक दशक से भी अधिक समय से राज्य में वित मंत्री रहे हैं, इसलिए उन्हें और उनके परिवार के लोगों और दोस्तों को पता है कि आयकर रिटर्न किस तरह दाखिल किया जाता है.

वैसे भी, अजित पवार की बहनों की शादियां करीब 25 साल पहले हो चुकी हैं और पवार परिवार के बिजनेस से उनका कोई रिश्ता नहीं है. यह बहुत साफ है कि बीजेपी का किसानों के प्रति कैसा रवैया है. पवार इसी वजह से लड़ाई दूसरी तरफ भी ले गए हैं- महिलाओं की ओर. इसीलिए शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले ने भी बयान जारी कर बताया है कि बीजेपी का महिलाओं के प्रति कैसे कोई सम्मान नहीं है.

जिला परिषदों और पंचायत समितियों के चुनावों में एक बार जोर-आजमाइश हो चुकी है. एमवीए गठबंधन ने इनमें से आधी से अधिक सीटें जीतीं जबकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के साथ गठबंधन के बावजूद बीजेपी का प्रदर्शन खराब रहा. यह साफ है कि ग्रामीण वोटरों को अपने साथ बनाए रखने के लिए न तो शिव सेना, न एनसीपी को बीजेपी के साथ किंचित भी रिश्ता रखना होगा.

एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक के हाल में किए गए प्रेस कॉन्फ्रेंस पवार के मन-मिजाज के नए संकेत हैं. नवाब मलिक को पवार के काफी निकट माना जाता है. उन्होंने शाहरुख खान के बेटे आर्यन को एनसीबी छापे में गिरफ्तार किए जाने के मुद्दे पर कई सवाल उठाए हैं. शिव सेना को लेकर हर समय सतर्क रहने वाली कांग्रेस का रवैया भी सामान्य हुआ है. दोनों अब मिल- जुलकर सोच-विचार और काम कर रहे.

शिव सेना का उतना ग्रामीण आधार नहीं है और हाल में हुए चुनावों में वह कांग्रेस और एनसीपी से पीछे रही है. कांग्रेस ने तीनों पार्टियों का नेतृत्व किया और वह सीटों के खयाल से बीजेपी से तनिक ही पीछे रही है. लखीमपुर खीरी कांड के खिलाफ तीनों पार्टियों के प्रवक्ताओं ने एक साथ आकर बंद की घोषणा की.

बीजेपी के प्रभाव वाले इलाकों में युवक कांग्रेस कार्यकर्ता जिस तरह शिव सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बंद कराते दिखे, वह भी असामान्य ही था. बात बिल्कुल साफ है- वे मिल-जुलकर रहेंगे और केन्द्रीय एजेंसियां उन पर, उनके दोस्तों और परिवार वालों पर चाहे जो कार्रवाई करें, इनका गठबंधन पर कोई असर नहीं होने वाला. बीजेपी ने किसानों और एमवीए नेताओं के साथ बहुत खेल कर लिए.

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