महाराष्ट्र के सियासी संकट पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है. फैसला 9 बजे आएगा. शिवसेना के वकील सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि राज्यपाल ने बिना तथ्यों की पुष्टि किए या विधायकों से बात किए फ्लोर टेस्ट का फैसला ले लिया. राज्यपाल देवदूत नहीं होते, इंसान ही होते हैं. स्पीकर को राजनीतिक व्यक्ति कह दिया जाता है, लेकिन क्या राज्यपाल निष्पक्ष होते हैं?
उन्होंने कहा कि हम वास्तविक दुनिया में जी रहे हैं. सिर्फ सैद्धांतिक दलील नहीं दी जा सकती. सब जानते हैं कि इन राज्यपाल महोदय ने विधान परिषद में सदस्यों का मनोनयन लंबे अरसे तक अटकाए रखा. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड और मध्यप्रदेश के मामले में भी कोर्ट ने स्पीकर को विधायकों की अयोग्यता पर फैसला लेने से नहीं रोका था. यहां भी फैसला लेने देना चाहिए. कुछ सदस्यों को कोविड हुआ है, राज्यपाल भी कोविड से उबरे हैं.
अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि स्पीकर के फैसले से पहले वोटिंग नहीं होनी चाहिए, उनके फैसले के बाद सदन सदस्यों की संख्या बदलेगी. फ्लोर टेस्ट बहुमत जानने के लिए होता है. इसमें इस बात की उपेक्षा नहीं कर सकते कि कौन वोट डालने के योग्य है, कौन नहीं.
आपको बता दें कि महाराष्ट्र में जारी राजनीतिक संकट के बीच मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कैबिनेट मीटिंग की. उसमें उन्होंने कुछ भावुक बातें भी कहीं. मीडिया में ऐसी खबरें चल रही है कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उद्धव सरकार के खिलाफ जाता है, ऐसी स्थिति में वह फ्लोर टेस्ट से पहले ही इस्तीफा दे सकते हैं. हालांकि जो बातें मीडिया में बताई जा रही है.
उद्धव ठाकरे ने बैठक के दौरान औरंगाबाद का नाम बदल ले जाने को लेकर फैसला लिया. उन्होंने सभी अपने साथियों का शुक्रिया भी अदा किया. लेकिन उनकी तरफ से यह भी कहा गया कि इस समय उनके अपनों ने ही उनके साथ धोखा दिया है. जानकारी के लिए बता दें कि शिंदे गुट की बगावत के बीच उद्धव सरकार ने कैबिनेट बैठक में बड़ा फैसला लेते हुए औरंगाबाद का नाम बदला है. अब औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर रखा गया है.