एक तरफ जहां बीजेपी अमृतकाल मना रही है. वहीं कांग्रेस के लिए यह संक्रमण काल है. हर बार चुनाव हारने के बाद कांग्रेस के लोग कहते हैं कि हम लौटेंगे. लेकिन सच यही है कि कांग्रेस लौटने की बजाय लगातार अपनी जमीन और जनाधार खोती जा रही है. यह कांग्रेस की लगातार हार ही है कि बीजेपी के छोटे-मोटे नेता भी कांग्रेस पर तंज कसते हैं और राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी की राजनीति का मजाक उड़ाते हैं.
इसमें बीजेपी के उन नेताओं की गलती नहीं है. कांग्रेस को खुद के बारे में आत्ममंथन करने की जरूरत है. दरअसल सच यह है कि अब पहले वाली राजनीति नहीं है. क्षेत्रीय पार्टियों ने कांग्रेस को कमजोर किया, लेकिन वहीं क्षेत्रीय पार्टियां बीजेपी के लिए वरदान साबित हो रही है. आज बीजेपी का जो मुकाम है उसमें क्षेत्रीय पार्टियों की बड़ी भूमिका है.
पूर्वोत्तर में आज बीजेपी की जो जमीन दिखाई पड़ रही है वह सब क्षेत्रीय पार्टियों की बदौलत है. बीजेपी पहले क्षेत्रीय पार्टियों के सहारे आगे बढ़ती और फिर बाद में उसे खा जाती है और इसे ही कूटनीति कहा जाता है. पहले पूर्ण बहुमत की सरकार कांग्रेस भी बनाती थी, लेकिन अब संभव नहीं दिखाई देता. इसकी संभावना 90 के दशक से ही खत्म हो गई.
कांग्रेस के बारे में 2 सवाल उठ रहे हैं. पहला सवाल तो यह है कि क्या बीजेपी अपने कांग्रेस मुक्त भारत के नारे के साथ उसे किनारे लगाने में लगी है? और दूसरा सवाल यह है कि कांग्रेस के विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी सामने खड़ी होती जा रही है और वह क्या कामयाब हो जाएगी?
क्या कांग्रेस मुक्त भारत का नारा बीजेपी का सफल होगा? इसका जवाब यह है कि, आज के दौर में तो बीजेपी विस्तार नीति लगातार अपना कर आगे बढ़ रही है. लेकिन लंबे वक्त तक यह चलता रहेगा ऐसा मुमकिन दिखाई नहीं देता. अभी के वक्त में देश की जनता को अगर यही पसंद आ रहा है तो क्या कर सकते हैं. अगर जनता पाखंड में ही खुश हैं तो आप कुछ नहीं कर सकते. सच्ची बातें कड़वी लगती है. लेकिन झूठ, पाखंड और धर्म के नाम पर खेल अगर जनता को आकर्षित करते हैं तो कोई क्या कर सकता है? लेकिन कब तक?
इस तरह के खेल अधिक समय तक नहीं चलते हैं लेकिन यह जल्दी खत्म भी नहीं होते हैं.
दूसरा सवाल, क्या आम आदमी पार्टी और केजरीवाल कांग्रेस का विकल्प बनेंगे? आम आदमी पार्टी को पंजाब में प्रचंड बहुमत मिला है. कई लोगों ने बीजेपी के खिलाफ 2024 के संभावित गठबंधन की धूरी के रूप में आम आदमी पार्टी को देखना शुरू कर दिया है. लेकिन आम आदमी पार्टी क्या कामयाब हो पाएगी बीजेपी का विकल्प बनाने में और कांग्रेस की जगह लेने में?
आम आदमी पार्टी के लिए यह रास्ता आसान नहीं है. गैर बीजेपी गठबंधन का कोई ढांचा तय नहीं हुआ है. ममता बनर्जी और केसीआर विपक्ष की ओर से मुख्य खिलाड़ी बनने का दावा ठोकते रहते हैं. विपक्षी खेमे में अभी भी एकमात्र राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस है और वह रुतबा यूं ही नहीं छोड़ देगी. आम आदमी पार्टी राज्य के लिहाज से महज 20 लोकसभा सीटों पर असरदार होगी. ममता के पास 42 सीटों का असर है. यहां तक कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कुल मिलाकर 36 सीटें हैं.
आम आदमी पार्टी अभी तक विधानसभा के प्रदर्शनों को लोकसभा सीटों में बदलने में नाकाम रही है. दिल्ली में अभी तक यह एक भी लोकसभा सीट नहीं जीत पाई है. पंजाब में भी 2014 के 4 से गिरकर यह 2019 में 1 पर आ गया. गुजरात के विधानसभा चुनाव के प्रदर्शनों पर नजर रखनी होगी. अगर केजरीवाल गुजरात के दो तरफा मुकाबले को त्रिकोणीय बना पाए हैं तब.
गुजरात, हिमाचल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में 95 लोकसभा सीटें हैं. यहां सीधा मुकाबला बीजेपी का कांग्रेस से है. कांग्रेस का चार राज्यों में शासन है. 2 राज्यों में यह सीधे सत्ता में है और दो में गठबंधन के तहत. लेकिन इसके अलावा कांग्रेस पार्टी 15 राज्यों में प्रमुख खिलाड़ी है. इन राज्यों में क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका लगभग 0 है.
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने 403 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 196 सीटों पर दूसरे पोजीशन पर थी. भले ही जीती 52. इसलिए मोदी का विकल्प बनने की केजरीवाल की महत्वाकांक्षा और क्या मोदी का विकल्प केजरीवाल बन सकते हैं, यह सवाल कम से कम 2024 के लिए दूर की कौड़ी साबित होने वाला है.
आम आदमी पार्टी कांग्रेस का विकल्प बनेगी, अभी यह कहना जल्दबाजी होगा. इसके लिए अभी आम आदमी पार्टी को कई साल आग में झुलसना होगा. हो सकता है कि कांग्रेस का विकल्प बनने से पहले ही आम आदमी पार्टी की राजनीतिक मौत बीजेपी के ही हाथों हो जाए. आम आदमी पार्टी के सामने रोड़ा अभी ममता बनर्जी तथा केसीआर हैं. स्टालिन है, बीजद भी. शिवसेना है तो एनसीपी और जदयू भी.
2 साल बाद लोकसभा चुनाव होना है. 5 राज्यों में कांग्रेस की हार जरूर हुई है, लेकिन अगर पार्टी को नए सिरे से तैयार किया गया तो आने वाले 1 साल में 10 से ज्यादा राज्यों में चुनाव है. इन राज्यों में हिमाचल प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य हैं. जहां बीजेपी और कांग्रेस का सीधा मुकाबला होना है. यह राज्य कांग्रेस और बीजेपी के लिए चुनौती भरे हैं. दावे के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता.
कांग्रेस को उन सभी बीजेपी पीड़ित जमातो को एक मंच पर लाने की जरूरत है, जिसकी सामूहिक ताकत से बीजेपी को चुनौती दी जा सके और कांग्रेस खुद भी मजबूती पा सकें. अगर कांग्रेस ऐसा करती है तो कांग्रेस समेत सभी बीजेपी पीड़ित पार्टियां मिलकर, एकजुट होकर बीजेपी को चुनौती देती है तो संभव है कि कांग्रेस का इक़बाल लौट आए.