उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जस्टिस वीरेंद्र श्रीवास्तव की मौत के मामले में रिपोर्ट तलब की है. जस्टिस वीरेंद्र श्रीवास्तव कोरोना संक्रमित थे 28 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गई थी.
23 अप्रैल को संक्रमण बढ़ने पर उन्हें लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन वहां पर ना तो अटेंडेंट मिला ना ही समय पर इलाज मिला था. हालत बिगड़ जाने के बाद मेडिकल स्टाफ को जानकारी हुई कि मरीज हाई कोर्ट के जज है तो आनन-फानन में उन्हें पीजीआई के वीवीआईपी वार्ड में भर्ती कराया गया.
लेकिन उसके बाद भी उनको बचाया नहीं जा सका. हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार से रिपोर्ट मांगी है कि जज वीके श्रीवास्तव को 23 अप्रैल को ही पीजीआई में क्यों नहीं भर्ती कराया गया था? इसके अलावा इलाहाबाद हाई कोर्ट की तरफ से कहा गया है कि हमें बताया गया है कि न्यायमूर्ति श्रीवास्तव को 23 अप्रैल की सुबह लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन शाम तक उनकी देखभाल नहीं की गई.
इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सिद्धार्थ वर्मा और अजीत कुमार की डबल बेंच ने कहा है कि शाम 7:30 बजे हालत बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया और उसी रात उन्हें एसजीपीजीआई मे ले जाया गया, जहां वह 5 दिन आईसीयू में रहे और उनकी कोरोना संक्रमण से मृत्यु हो गई.
अदालत ने अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल से कहा है कि वह हलफनामा दाखिल कर बताएं कि राम मनोहर लोहिया अस्पताल में न्यायमूर्ति श्रीवास्तव का क्या इलाज हुआ और उन्हें 23 अप्रैल को ही एसजीपीजीआई क्यों नहीं ले जाया गया? इसके अलावा आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर ने कोहराम मचाया हुआ है.
पंचायत चुनाव सरकारी कर्मचारियों की जान पर भारी पड़ गए हैं. कई परिवारों से उनका सहारा छिन गया है इन चुनावों में संक्रमित हुए दो हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों की जान चली गई है. आंकड़ों को देखें तो 706 शिक्षकों की मौत तो मतगणना से पहले ही हो चुकी थी.