Abhimanyu Vadh Mahabharat: महाभारत के युद्ध में तथा कौरवों तथा पांडवों को लेकर लोगों में कई सवाल रहते हैं तथा इस युद्ध के बारे में जानने की इच्छा भी लोगों के मन में होती है. महाभारत का युद्ध क्यों हुआ था, यह तो लगभग सभी लोग जानते ही हैं. महाभारत में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु कैसे हुई थी यह भी सभी लोग जानते हैं. लेकिन अभिमन्यु को लेकर लोगों के मन में दया की भावना जागृत होती है और उनकी मृत्यु को लेकर कई तरह के सवाल भी होते हैं.
आज हम ऐसी ही कुछ बातें बताएंगे, जिसके कारण महाभारत के युद्ध में अर्जुन पुत्र अभिमन्यु (Abhimanyu Vadh Mahabharat) की मृत्यु हो गई.
भगवान कृष्ण की चाल
ऐसा माना जाता है कि भगवान कृष्ण की नीति के चलते अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को चक्रव्यूह भेजने का आदेश दिया गया. यह जानते हुए भी कि अभिमन्यु चक्रव्यूह भेजना तो जानते हैं, लेकिन उसमें बाहर निकलना नहीं जानते. अभिमन्यु के चक्रव्यूह में जाने के बाद उन्हें चारों ओर से घेर लिया गया. जयद्रथ सहित सात योद्धाओं द्वारा निर्मम तरीके से हत्या कर दी गई, जो कि युद्ध के नियमों के विरुद्ध था.
कहते हैं कि श्री कृष्ण यही चाहते थे. जब नियम एक बार एक पक्ष तोड़ देता है तो दूसरे पक्ष को भी इसे तोड़ने का मौका मिलता है.
युद्ध नियम के विरुद्ध वध
अर्जुन पुत्र अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदने के लिए उसमें घुस गए थे. चक्रव्यूह में प्रवेश करने के बाद अभिमन्यु ने कुशलतापूर्वक चक्रव्यू के छह चरण तोड़ते हुए अंदर चले गए थे. इस दौरान अभिमन्यु द्वारा दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का वध किया गया. अपने पुत्र को मृत देख दुर्योधन के क्रोध की कोई सीमा न रही. तब कौरवों ने युद्ध के सारे नियम किनारे रख दिए. 6 चरण पार करने के बाद अभिमन्यु जैसे ही सातवें और आखिरी चरण में पहुंचे तो उन्हें दुर्योधन जयद्रथ आदि 7 महारथियों ने घेर लिया.
इतना कुछ होने के बाद भी अभिमन्यु साहस पूर्वक लड़ते रहे. सातों ने मिलकर अभिमन्यु के रथ के घोड़ों को मार दिया, फिर भी अपनी रक्षा करने के लिए अभिमन्यु ने अपने रथ के पहिए को अपने ऊपर रक्षा कवच बनाते हुए रख लिया और दाएं हाथ से तलवारबाजी करते रहे. कुछ देर बाद अभिमन्यु की तलवार टूट गई और रथ का पहिया भी चकनाचूर हो गया.
अब अभिमन्यु निहत्थे थे. युद्ध के नियम के तहत निहत्थे पर वार नहीं करना चाहिए. किंतु तभी जयद्रथ ने पीछे से निहत्थे अभिमन्यु पर जोरदार तलवार का प्रहार किया. इसके बाद एक के बाद एक सातों योद्धाओं ने उन पर वार पर वार किए. अभिमन्यु वहां वीरगति को प्राप्त हो गए.
अभिमन्यु के साथ कोई योद्धा अंदर नहीं जा पाया
चक्रव्यूह तोड़ने जाने से पहले यही सोचा गया था कि अभिमन्यु चक्रव्यूह को तोड़ेंगे और उनके साथ अन्य योद्धा भी पीछे से चक्रव्यू के अंदर घुस जाएंगे. लेकिन जैसे ही अभिमन्यु घुसे और व्यूह फिर से बदला तो पहली कतार पहले से ज्यादा मजबूत हो गई. पीछे के योद्धा भीम, नकुल, सहदेव और अन्य अंदर घुस ही नहीं पाए. युद्ध में शामिल योद्धाओं में अभिमन्यु के स्तर के धनुर्धर 2-4 ही थे. यानी थोड़े ही समय में अभिमन्यु चक्रव्यूह के और अंदर चले गए, लेकिन अकेला. नितांत अकेला. पीछे कोई नहीं आ पाया.
थक गए लड़ते-लड़ते
जैसे-जैसे अभिमन्यु चक्रव्यूह के अंदर जाते गए वैसे वैसे वहां खड़े योद्धाओं द्वारा घनत्व और योद्धाओं का कौशल उन्हें बढ़ा हुआ मिला. क्योंकि वह सभी योद्धा युद्ध नहीं कर रहे थे बस खड़े थे. जबकि अभिमन्यु युद्ध करते हुए अंदर तक जा रहे थे. वह जहां युद्ध और व्यूह रचना तोड़ने के कारण मानसिक और शारीरिक रूप से थके हुए थे, वही कौरव पक्ष के योद्धा तरोताजा थे. ऐसे में अभिमन्यु के पास चक्रव्यूह से निकलने का ज्ञान होता तो वह बच जाते या उनके पीछे दूसरे योद्धा भी उनका साथ देने के लिए आते तो भी वह बच जाते. लेकिन थकान के कारण वह अधिक जोश और होश से नहीं लड़ पाए.