Major General Shahnawaz Khan- पिछले कुछ सालों में देखा गया है कि मुसलमानों को एक विचारधारा के लोग संदिग्ध निगाहों से देखते हैं, मुसलमानों से उनकी देशभक्ति का सबूत मांगा जाता है. मुसलमानों के खिलाफ एक प्रोपेगेंडा चलाया जाता है. देश की आजादी में मुसलमानों के वजूद को नकारने की कोशिश होती है और यह सब कुछ हो रहा है सिर्फ राजनीतिक लाभ लेने के लिए. एक धर्म को दूसरे धर्म के खिलाफ खड़ा करके अपनी राजनीतिक गद्दी को बचाने की कोशिश हो रही है. लेकिन आज बात होगी उस मुसलमान की जिसकी रगों में सिर्फ और सिर्फ हिंदुस्तान दौड़ता था.
भारत के इतिहास में कई वीर सपूत हुए हैं जिनके साहस की कहानियां हम अपनी जुबानी लोगों को बताते हैं. इन्हीं वीर सपूतों में कुछ ऐसे भी होते हैं जिनपर देश को हमेशा गर्व होता है और देश गर्व करें ऐसे अनेकों सपूत भारत में पैदा हुए हैं. आज जहां मुसलमानों को संदिग्ध निगाहों से देखा जाता है वही लाखों-करड़ों मुसलमानों ने देश की आजादी के लिए दूसरे धर्म के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी.
आजाद हिंद फौज के पहले “मेजर जनरल शाहनवाज खान” (Major General Shahnawaz Khan) भी ऐसे ही वीर सपूत थे, जिनकी रगों में हिंदुस्तान दौड़ता था. मेजर जनरल शाहनवाज खान की गिनती सुभाष चंद्र बोस के बेहद करीबियों में होती है. वह 1952 से 1971 तक लगातार चार बार मेरठ से सांसद भी रहे. शाहनवाज खान को उस घटना के लिए भी याद किया जाता है, जब उन्होंने लाल किले से ब्रिटिश हुकूमत का झंडा उतारकर भारतीय तिरंगा लहरा दिया था. शाहनवाज खान का जन्म 24 जनवरी 1914 को रावलपिंडी के मटौर गांव में हुआ था.
शाहनवाज खान का जन्म स्थल अब पाकिस्तान में है. उनके पिता सरदार टीका खान ने उन्हें प्यार से बड़ा किया और स्कूल भी भेजा. प्रिंस ऑफ वेल्स रॉयल इंडियन मिलिट्री कॉलेज देहरादून से अपनी पढ़ाई पूरी की. बताया जाता है कि वह साल 1943 था जब मेजर जनरल शाहनवाज खान सुभाष चंद्र बोस के संपर्क में आए और उनसे प्रभावित होकर बाद में आजाद हिंद फौज में भर्ती हुए. सुभाष चंद्र बोस के संपर्क में आने के बाद उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया, इसके लिए उन पर राजद्रोह का मुकदमा भी दर्ज हुआ. मगर वह पीछे नहीं हटे.
मेजर जनरल शाहनवाज खान ने लाल किले से अंग्रेजों का झंडा उतार कर भारत का तिरंगा फहरा दिया था. देश की आजादी के बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए और मेरठ से लोकसभा चुनाव जीता. 20 से अधिक सालों तक वह केंद्र सरकार में मंत्री रहे और अलग-अलग विभागों को देखा. 1952 में जब लोकतंत्र की नींव रखी जा रही थी तो भारत माता के सिपाह सलाहकार जनरल शाहनवाज खान को मेरठ ने सिर आंखों पर बिठा लिया.
नारा लगा- क्या बात हुई क्या गरज पड़ी, ये रंग-ए-जहां बदला कैसा मगरूरों का मजलूमों में सर रखना कैसा हिंदू कैसा, मुस्लिम कैसा, ब्राह्मण कैसा, बनिया कैसा हम वोट शाहनवाज को देंगे, हम वोट शाहनवाज को देंगे.
सियासी जंग में गुम हो गई पूर्व सांसद जनरल शाहनवाज खान की आवाज
पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर जनरल शाहनवाज खान मेरठ के पहले सांसद बने. 1952 से 1971 तक लगातार चार बार सांसद चुने गए. एक वक्त था जब मेरठ शहर की गली गली में शाहनवाज का नाम गूंजता था. उत्तर प्रदेश में पड़ता है मेरठ शहर और यहां लंबे समय तक सपा और बसपा की सरकार रही हैं और भाजपा की भी सरकार रही है. जनरल शाहनवाज खान की बहू पोता और पूरा परिवार रहता है. जनरल खान के बड़े बेटे आदिल ने एक बार कहा था कि हमने कई बार सरकार और प्रशासन से कहा कि शहर में जनरल साहब की याद में कोई स्मारक बने, लेकिन सुनवाई नहीं हुई. थक हार कर हम ने ही 2010 में “जनरल शाहनवाज मेमोरियल फाउंडेशन” बनाया. हर साल उनकी बरसी पर जमा मस्जिद के पास मजार पर आयोजन करते हैं.
यह दुर्भाग्य और अपमान है उस सपूत का जिसने आजादी की लड़ाई में अपने कदम नहीं डिगने दिए. नेहरू जी ने खुद जनरल साहब को मेरठ से चुनाव लड़ने भेजा था लेकिन आज शहर उन्हें भुला चुका है. आज भले ही उन्हें कम लोग जानते हैं लेकिन अपनी वीरता के लिए वह हमेशा याद किए जाएंगे. भले ही एक विचारधारा के लोग मुसलमानों के योगदान को नकार रहे हैं आजादी में, लेकिन जनरल मेजर शाहनवाज खान की तरह ही लाखों मुसलमानों ने हिंदुओं के साथ, सिखों के साथ और दूसरे धर्म के लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इस देश को आजादी दिलाई है.