सबसे ताकतवर संस्था बीजेपी के अंदर संसदीय बोर्ड संगठन (Parliamentary board organization BJP) है. उसके बाद अगर किसी का नंबर आता है तो वह केंद्रीय चुनाव समिति का है. इन दोनों ही जगह पर बीजेपी में समय-समय पर फेरबदल होते रहे हैं. किसी को शामिल किया जाता है तो किसी को बाहर किया जाता है. लेकिन इस बार इसकी चर्चा कहीं अधिक हो रही है, क्योंकि इसमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मोदी मंत्रिमंडल के सबसे सफल और लोकप्रिय मंत्री नितिन गडकरी को बाहर कर दिया गया है.
राजनीतिक गलियारों में अलग ही चर्चा है
संसदीय बोर्ड संगठन के नामों पर अगर गौर किया जाए तो राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बीजेपी के सर्वोच्च स्तर पर हुआ ताजा बदलाव लगभग डेढ़ साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों को देखते हुए किया गया है. कई लोगों का यह भी कहना है कि पार्टी में हुआ यह बदलाव प्रधानमंत्री मोदी के बाद नंबर दो पर अमित शाह को ले जाने की कोशिश है. ताजा फैसले ऐसे संकेत दे रहे हैं कि बीजेपी और आरएसएस पार्टी और सरकार दोनों जगहों पर अमित शाह को धीरे-धीरे नंबर दो तक ले जा रहे हैं.
नितिन गडकरी का कामकाज शानदार था, उनको बाहर किया गया. संघ के करीबी माने जाते हैं. इसके बावजूद उनकी जगह केंद्रीय चुनाव समिति में ब्राह्मण जाति के ही देवेंद्र फडणवीस को शामिल किया गया. इससे संकेत मिलता है कि अमित शाह को आगे ले जाने का प्रयास बीजेपी के अंदर हो रहा है. यानी प्रधानमंत्री मोदी के बाद नंबर दो की पोजीशन अमित शाह की होगी. जबकि पिछले कुछ महीनों से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नाम पर भी खूब प्रचार हो रहा था. तमाम मुद्दों को पीछे छोड़ कर अमित शाह को नंबर दो की पोजीशन पर काबिज करने की कोशिश हो रही है. गडकरी के पिछले कुछ बयानों से भी बीजेपी नेतृत्व नाराज नजर आ रहा था.
संसदीय बोर्ड ही होता है जो राज्यों में बीजेपी की सरकार बनने पर मुख्यमंत्री का नाम फाइनल करता है. समझने वाली बात यहां पर यह है कि दोनों ही संस्थाओं के सदस्य महत्वपूर्ण फैसलों में भागीदार होते हैं. ऐसे में किसी नेता को हटाया जाना तो यही समझा जाना चाहिए कि महत्वपूर्ण फैसलों से उसे दूर किया जा रहा है. हालांकि इससे पहले भी कई बार ऐसा हुआ है, लेकिन इस बार दो महत्वपूर्ण नाम बाहर हुए हैं, इसलिए चर्चा ज्यादा है तो क्या कोई संदेश देने की कोशिश हुई है?
केंद्रीय चुनाव समिति में महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को शामिल किया गया है और नितिन गडकरी को संसदीय बोर्ड से बाहर किया गया है. यह महाराष्ट्र के लिए बड़ी राजनीतिक घटना है बीजेपी के अंदर. क्योंकि देवेंद्र फडणवीस और नितिन गडकरी दोनों संघ से आते हैं. एक को बाहर किया गया है एक को अंदर किया गया है. नितिन गडकरी महाराष्ट्र संघ के बड़े चेहरे हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के फेवरेट भी माने जाते हैं. नितिन गडकरी बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रह चुके हैं. एक निजी कार्यक्रम में उन्होंने एक बयान दिया था. उन्होंने कहा था, मुझे लगता है मैं कब राजनीति छोड़ दूं.. और कब नहीं, क्योंकि जिंदगी में करने के लिए और भी कई चीजें हैं.
क्या शिवराज सिंह चौहान को संदेश दिया गया है?
मध्य प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को संसदीय बोर्ड से हटाया जाना कोई अच्छा संदेश नहीं है जनता के बीच, खासकर तब जब बीजेपी नेतृत्व चुनावों से पहले मुख्यमंत्री बदलने की पहले ही शुरुआत कर चुका हो. 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार हुई थी और शिवराज सिंह चौहान को दिल्ली नेतृत्व ने बुला लिया था. लेकिन सिंधिया की बदौलत जब मध्य प्रदेश में सरकार बनाने का मौका मिला तो शिवराज सिंह चौहान का कोई विकल्प नहीं मिला और फिर से वह मुख्यमंत्री बन गए.
शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री तो बन गए थे लेकिन उनके हाथ पाव पहले की तरह खुले नहीं छोड़े गए थे. वह अपनी पसंद के मंत्री भी बहुत कम लोगों को बना सके थे. जबकि उनके कैबिनेट में ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों का दबदबा महसूस किया गया था. हिमंत विस्वा सरमा को असम का मुख्यमंत्री बनाने के बाद तो बीजेपी यह संदेश दे चुकी है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया के भी अच्छे दिन आ सकते हैं. वैसे भी सिंधिया फिलहाल मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. क्या संसदीय बोर्ड से हटाए जाने को शिवराज सिंह चौहान को अपने लिए कोई खास संदेश समझ लेना चाहिए?
शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश बीजेपी की तरफ से ओबीसी कब बड़ा चेहरा रहे हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी में उनका कद कम हो गया है. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का बाहर होना और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शामिल न होने से उनके प्रशंसकों को निराशा हुई होगी. लेकिन कहीं ना कहीं यह फैसला अमित शाह को आगे बढ़ाने से ही जुड़ा है.