कुछ ही महीनों में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव (2023 Madhya Pradesh Assembly Election) संपन्न होने वाले हैं. राज्य में कांग्रेस और बीजेपी में सीधी लड़ाई एक बार फिर से देखने को मिलने वाली है. दोनों ही पार्टियों ने अपनी रणनीति को धारण देना शुरू कर दिया है. दोनों ही पार्टियां विधानसभा चुनाव में जीत के दावे कर रही हैं. कमलनाथ मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार को सत्ता से बेदखल करने की बातें कर रहे हैं.
दिलचस्प यह है कि बीजेपी कांग्रेस की सीधी टक्कर में आम आदमी पार्टी भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने की बातें कर रही है. तो क्या गुजरात की तरह मध्यप्रदेश में भी आम आदमी पार्टी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा पाएगी और क्या इससे बीजेपी को सीधा लाभ होगा?
पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी हार गई थी. कांग्रेस ने कुछ छोटे दलों और निर्दलीय विधायकों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी. लेकिन कुछ दिनों बाद कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से हाथ छुड़ा लिया और अपने समर्थक विधायकों के साथ बीजेपी का दामन थाम लिया था. कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार गिर गई थी और सत्ता की कुंजी एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान के हाथों में आ गई थी.
राजनीतिक दलों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है मध्य प्रदेश में?
24 जनवरी को राज्य कार्यकारिणी की बैठक में बीजेपी के नेताओं ने काफी मंथन किया और इसी दौरान प्रदेश अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने विधानसभा के चुनावों के लिए 200 दिनों की कार्ययोजना बनाने की घोषणा की. मध्य प्रदेश के प्रभारी मुरलीधर राव ने 200 दिनों की कार्य योजना पर विस्तार से बात करते हुए कहा कि 200 दिनों में 200 सीटें हासिल करने का लक्ष्य प्रदेश के संगठन, नेताओं, विधायकों, सांसदों और मंत्रियों के सामने है.
इसी दौरान मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि उनके पास उन नेताओं की फाइल मौजूद है जो पिछले चुनावों में पार्टी के उम्मीदवार के साथ जरूर घूमे थे, मगर उन लोगों ने चुनावों में पार्टी के खिलाफ काम किया था. शिवराज के अनुसार उसकी वजह से कई उम्मीदवारों को हार का सामना करना पड़ा था. उन्होंने इस दौरान भितरघात जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी किया.
मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी की दिग्गज नेता उमा भारती कार्यसमिति की बैठक से कुछ ही देर में अचानक निकल पड़ीं. बाद में उन्होंने ट्वीट किया, लगता है मध्यप्रदेश में 2018 का माहौल आ गया है जब हमारे जैसे लोगों को लेकर झूठी बातें फैलाई जाती थी. लेकिन जिस बात को लेकर संगठन के अंदरूनी हलकों में हलचल मची वह है उनके आरोप कि संगठन में “डर्टी ट्रिक्स डिपार्टमेंट” काम कर रहा है.
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार मध्य प्रदेश का विधान सभा चुनाव मुद्दों पर नहीं बल्कि अस्मिता और भावनाओं पर लड़ा जाएगा, क्योंकि इस बार सभी के पास मुद्दों की कमी है और सारा दारोमदार उम्मीदवारों के चयन पर ही होगा. बीजेपी का नेतृत्व कमजोर नहीं है, क्योंकि शिवराज सिंह चौहान पार्टी के सर्वमान्य चेहरा है. हालांकि बीजेपी क्या मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर बदलाव करेगी इसको लेकर संशय बना हुआ है.
उम्मीदवारों का चयन सही से ना कर पाने की वजह से बीजेपी को पिछली बार के विधानसभा चुनाव में करीब 30 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था. हालांकि राजनीतिक जानकारों का यह भी मानना है कि टिकट वितरण में इस बार बीजेपी बड़ा बदलाव कर सकती है. कई मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जा सकते हैं ठीक गुजरात की तर्ज पर और नए लोगों को मौका दिया जा सकता है, जिससे जीत और सीटों के बढ़ाने पर जोर दिया जा सके.
कांग्रेस क्या कर रही है?
मध्यप्रदेश में कांग्रेस ने सबसे पहले अपनी युवा इकाई में सुधार किया है और राज्य की पूरी कार्यकारिणी को ही बदल डाला है. कई पार्टी नेताओं को कारण बताओ नोटिस भी जारी किए गए हैं और जिले की इकाइयों भी पुनर्गठन किया गया है. चुनौतियां कांग्रेस के लिए भी कम नहीं है, लेकिन प्रदेश कांग्रेस के मीडिया प्रभारी पीयूष बाबेल का कहना है कि पिछली बार कांग्रेस को जनादेश मिला था लेकिन बीजेपी ने डेढ़ साल में ही कांग्रेस की सरकार गिरा दी थी. उन्हें लगता है कि इसका फायदा कांग्रेस को होगा.
हालांकि राजनीतिक जानकार पीयूष बाबेल की बातों से कुछ हद तक सहमत नजर आते हैं. क्योंकि जिस वक्त मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार को बीजेपी ने गिरा दिया था उस वक्त कहीं ना कहीं बीजेपी समर्थकों को भी लग रहा था कि बीजेपी की तरफ से यह गलत किया गया है और कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को कम से कम 5 साल का मौका मिलना चाहिए था.
कांग्रेस की सरकार के गिर जाने से बीजेपी के खिलाफ जो लोगों में आक्रोश था वह बढ़ गया. लोगों ने कांग्रेस को जिताया था मगर सरकार को जोड़-तोड़ करके गिरा दिया गया था. पूरे प्रदेश में आंदोलनों का दौर भी चल रहा है और बिजली कर्मचारी से लेकर आशा कार्यकर्ताओं तक आंदोलन कर रहे हैं. इसके अलावा मध्यप्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा रहेगा, क्या वह बीजेपी को हरा पाएगी? यह कुछ हद तक इस पर भी निर्भर करेगा कि कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का आपस में तालमेल कैसा रहता है.
इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस को सत्ता विरोधी लहर का फायदा मिल सकता है. सरकार में जो चेहरे हैं वह दशकों से चले आ रहे हैं जिसकी वजह से लोग बदलाव भी ढूंढ सकते हैं. लेकिन कांग्रेस को कई दिक्कतों से निपटना होगा. कई ऐसे नेता हैं जिनसे पार्टी ने किनारा कर लिया है या उन्होंने खुद पार्टी से किनारा कर लिया है. विपक्ष के नेता की राजनीतिक लाइन साफ तौर पर अलग दिखती और कमलनाथ की अलग.
कांग्रेस के लिए संघर्ष करने वाले चेहरों में से एक अरुण यादव भी किनारे ही नजर आ रहे हैं, जबकि वह प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं. उसी तरह अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह भी कई चुनाव हारने के बाद घर बैठ गए हैं. 2018 के चुनाव में जनता ने कांग्रेस के पक्ष में वोट कम और बीजेपी के विरोध में ज्यादा दिया था. अगर कांग्रेस एकजुट होकर चुनाव लड़ती है तो निश्चित तौर पर मध्यप्रदेश में बदलाव देखने को मिल सकता है.
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