हाल ही में कांग्रेस की तरफ से कहा गया था कि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव, बीएसपी की मुखिया मायावती और आरएलडी के मुखिया जयंत चौधरी को भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने का न्योता भेजा गया था. मीडिया के जरिए कांग्रेस के निमंत्रण की खबर जब फैली तो समाजवादी पार्टी और आरएलडी के प्रवक्ता ने बयान में कहा था कि अखिलेश और जयंत चौधरी के उस दौरान व्यस्त कार्यक्रम है, इसलिए वह यात्रा में शामिल नहीं हो पाएंगे.
बीएसपी के सूत्रों की तरफ से भी जानकारी आई कि मायावती भी शामिल नहीं होंगी वैसे भी मायावती हमेशा कांग्रेस पर हमलावर रही हैं. अब अखिलेश यादव ने बयान दिया है कि बीजेपी और कांग्रेस एक ही है. यानी वह साफ तौर पर राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से किनारा करते हुए नजर आ रहे हैं. उनके बयान से साफ है कि उन्हें राहुल गांधी का व्यक्तिगत निमंत्रण नहीं मिला है या कांग्रेस के किसी नेता ने व्यक्तिगत रूप से आकर उन्हें निमंत्रित नहीं किया है.
अखिलेश के नहीं शामिल होने की वजह से जयंत चौधरी ने भी खुद को पीछे कर लिया है, क्योंकि समाजवादी पार्टी और आरएलडी का गठबंधन है. लेकिन अखिलेश यादव ने जो बयान दिया है उसके कई मायने हैं. भारत जोड़ो यात्रा को मिल रहे जनसमर्थन को देखकर समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आरएलडी को कहीं ना कहीं यह डर सता रहा होगा कि अगर वह यूपी में कांग्रेस के मंच पर जाते हैं तो उनके मतदाताओं में कहीं ना कहीं कांग्रेस अपनी पैठ ना बना ले. इसलिए अखिलेश ने कांग्रेस को बीजेपी जैसे बता कर किनारा कर लिया है.
अखिलेश यादव यात्रा में शामिल होने से बचने के लिए दूसरा बयान भी दे सकते थे. लेकिन उनका कांग्रेस बीजेपी को एक जैसा बताने का अर्थ यही है कि वह कांग्रेस से दूरी बनाए रखना चाहते हैं. 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले विपक्षी एकता की कोशिशों के लिए यह एक झटका है. क्योंकि पिछले दिनों बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अखिलेश यादव से मुलाकात की थी और अखिलेश ने विपक्षी एकता मजबूत करने का भरोसा दिया था. लेकिन अब तस्वीर कुछ और ही नजर आ रही है. निश्चित तौर पर उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर नहीं था, कांग्रेस हाशिए पर है.
लेकिन भारत जोड़ो यात्रा को पूरे देश में जिस तरह से समर्थन मिल रहा है उससे कहीं ना कहीं यह लग रहा है कि जब यह यात्रा यूपी में प्रवेश करेगी तो वैसा ही समर्थन यूपी में भी मिलेगा और अखिलेश कहीं ना कहीं इस बात से डरे हुए हैं. इसलिए उनके मतदाताओं में कांग्रेस के लिए सहानुभूति जागृत ना हो या फिर कांग्रेस बीजेपी के सामने उत्तर प्रदेश में समाजवादी वोटरों को एक विकल्प ना नजर आने लगे 2024 के चुनाव में, अखिलेश इससे बचने की कोशिश कर रहे हैं.