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लोकसभा चुनाव 2024 में 400 से भी कम दिनों का वक्त बचा हुआ है. ऐसे में बीजेपी में लगभग बगावत का रुख अख्तियार कर चुके वरुण गांधी का अगला सियासी कदम क्या होगा इस पर दिल्ली से लेकर पीलीभीत तक के सियासी गलियारों में चर्चा तेज है. वरुण के कांग्रेस में शामिल होने के सवाल पर पिछले दिनों राहुल गांधी ने कहा था कि फैसला मल्लिकार्जुन खरगे को करना है.

इस दौरान राहुल गांधी का एक बयान भी काफी चर्चा में था. राहुल ने कहा कि वरुण मेरा भाई है और उसकी विचारधारा से मुझे दिक्कत है. दरअसल कांग्रेस वरुण की एंट्री को लेकर शुरुआत से ही खुद को ज्यादा उत्साहित नहीं दिखाना चाहती है. इसकी बड़ी वजह वरुण की राजनीतिक हिंदुत्व वाली फायर ब्रांड छवि है.

2009 में वरुण गांधी ने मुसलमानों को लेकर विवादित टिप्पणी की थी, उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. तत्कालीन मायावती की सरकार ने उन पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून लगाया था. इसके बाद सियासत में वरुण अपनी छवि हिंदुत्व की फायर ब्रांड नेता की बनाने में कामयाब हुए थे.

यूपी के तराई बेल्ट में कांग्रेस के पास पहले जितिन प्रसाद और आरपीएन सिंह जैसे नेता हुआ करते थे, लेकिन 2022 के चुनाव से पहले दोनों ने बीजेपी ज्वाइन कर ली थी. यूपी के तराई क्षेत्र में लखीमपुर खीरी, पीलीभीत, सुल्तानपुर, कुशीनगर जिले आते हैं. वरुण गांधी पीलीभीत और सुल्तानपुर से सांसद रह चुके हैं. ऐसे में वरुण अगर कांग्रेस में आते हैं तो इसका फायदा पार्टी को तराई इलाकों में मिल सकता है.

वरुण गांधी सोशल मीडिया पर अपनी ही सरकार के खिलाफ मुद्दे उठाने की वजह से किसानों और युवाओं के बीच काफी प्रसिद्ध हुए हैं. वरुण तेज तर्रार भाषण देने की वजह से चर्चा में रहते हैं. ऐसे में वरुण और अगर कांग्रेस में शामिल होते हैं तो पार्टी उनका उपयोग स्टार प्रचारक के रूप में कर सकती है.

वरुण को लेकर फैसला लेना आसान नहीं

वरुण गांधी का राजनीतिक कद राष्ट्रीय नेता का है. ऐसे में स्थानीय कांग्रेसियों के लिए वरुण की एंट्री मुश्किलें पैदा कर सकती है. कांग्रेस ने हाल ही में तराई के अलग-अलग जिलों को जोन बाटकर प्रांतीय अध्यक्ष नियुक्त किया था. ऐसे में वरुण अगर बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होते हैं तो इन नेताओं के लिए अपने जोन में राजनीतिक फैसला करना आसान नहीं होगा.

वरुण यूपी में कांग्रेस के लिए फायदेमंद है, इसके बावजूद कांग्रेस हाईकमान उन्हें पार्टी में शामिल कराने को लेकर ज्यादा उत्सुक नहीं है. इसकी बड़ी वजह वरुण के लिए पार्टी में जिम्मेदारी तय करना है. हाईकमान जानता है कि वरुण की छवि राष्ट्रीय नेता की है. अगर कांग्रेस में वरुण को लाया जाता है तो उन्हें एक क्षेत्र में ज्यादा दिनों तक सिमटकर नहीं रखा जा सकता. चुनाव से पहले वरुण अपनी भूमिका को लेकर भी बगावत कर सकते हैं, इसलिए कांग्रेस हाईकमान इस मुद्दे को अभी नहीं छू रहा है.

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