शनिवार को हिमाचल प्रदेश की विधानसभा की सभी 68 सीटों के लिए मतदान हुआ था. हिमाचल में इस बार कांग्रेस और बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली है. 68 सीटों में से लगभग 24 विधानसभा सीटें ऐसी रही जहां दोनों दलों के बागियों ने मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है. इनमें से 10 सीटों पर तो बागी मुख्य मुकाबले में भी नजर आ रहे थे. अब प्रदेश की सत्ता किसे मिलेगी इसका फैसला इन्हीं 10 सीटों के नतीजे से लगभग तय होगा.
हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की स्थिति ठीक नजर नहीं आ रही थी. प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों के बाद इस स्थिति में सुधार हुआ, ऐसा राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है. लेकिन बीजेपी हिमाचल प्रदेश में एकतरफा जीत जाएगी इसको लेकर अभी संशय बरकरार है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस चुनाव में कुछ फैक्टर कांग्रेस के पक्ष में नजर आ रहे हैं. बीजेपी की तरफ से मुख्य चेहरा और उम्मीद प्रधानमंत्री मोदी नजर आए और उसका फायदा बीजेपी को हिमाचल प्रदेश में कितना मिलता है यह तो नतीजों के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा.
बीजेपी के खिलाफ 5 साल की एंटी इनकंबेंसी, ओल्ड पेंशन स्कीम पर स्टैंड क्लियर न करना, बेरोजगारी, महंगाई और बड़ी संख्या में बागियों का मैदान में उतरना बीजेपी के खिलाफ जाता हुआ दिखाई दे रहा है. कांग्रेस के लिए इन्हीं चीजों ने प्लस प्वाइंट का काम किया है. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि बागी बीजेपी को 12 सीटों पर सीधा नुकसान करते हुए दिखाई दे रहे हैं. हिमाचल प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों में से 21 सीटों पर टिकट न मिलने से नाराज होकर बीजेपी के नेता निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे थे. कांग्रेस की स्थिति इस मामले में कुछ बेहतर दिखाई दी. क्योंकि उसे 7 सीटों पर ही बगावत का सामना करना पड़ा है.
बीजेपी की तरफ से बागियों की संख्या अधिक है. लेकिन अगर यह बागी चुनाव जीत जाते हैं तो ऐसी स्थिति में वह फिर से बीजेपी का ही समर्थन करेंगे, बीजेपी का दामन थाम लेंगे और अगर ऐसा होता है तो यह कांग्रेस के लिए नुकसान हो सकता है. हिमाचल प्रदेश में ओल्ड पेंशन स्कीम बड़ा फैक्टर हो सकती है और कांग्रेस में इसको लेकर रैलियों ने जोर शोर से मुद्दा बनाया है. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में हर 5 साल में सरकार बदलती है. अगर ऐसा हुआ तो इसका सीधा फायदा कांग्रेस को होगा.
हिमाचल प्रदेश की परंपरा कांग्रेस के पक्ष में दिखाई दे रही है. हिमाचल प्रदेश में हर 5 साल बाद सरकार बदलने का रिवाज रहा है. इस वजह से यह बात कांग्रेस के पक्ष में दिखाई दे रही है. साल 1986 से आज तक हिमांचल में कोई भी पार्टी अपनी सरकार रिपीट नहीं कर पाई है. बीजेपी ने इस परंपरा को तोड़ने के लिए मुख्यमंत्री जयराम की जगह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा सामने रखा था पूरे चुनाव प्रचार के दौरान. दूसरी तरफ कांग्रेस ने अपनी चुनावी रैलियों में हिमांचल का रिवाज कायम रखने की अपील की है.