पिछले विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही राजस्थान में कांग्रेस के अंदर सब कुछ ठीक नहीं है और यह समय-समय पर जनता को दिखाई भी दे रहा है. कभी अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) सचिन पायलट (Sachin Pilot) को लेकर बयानबाजी करते हैं तो कभी सचिन गहलोत पर पलटवार करते हैं. बस कुछ ही महीनों बाद राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन कांग्रेस राजस्थान की अपनी अंदरूनी लड़ाई को रोक नहीं पा रही है. माना जा रहा था कि राजस्थान में नेतृत्व को लेकर फैसला भारत जोड़ो यात्रा के बाद हो सकता है. लेकिन अभी भी इस पर असमंजस बना हुआ है.
सचिन पायलट ने बुधवार को कहा कि पिछले साल जयपुर में पार्टी विधायक दल की बैठक में भाग नहीं ले कर तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के निर्देश की अवहेलना करने वालें नेताओं के खिलाफ कार्रवाई में अत्यधिक विलंब हो रहा है. अगर राज्य में हर 5 साल में सरकार बदलने की परंपरा बदलनी है तो राजस्थान में कांग्रेस से जुड़े मामलों पर जल्द फैसला करना होगा. क्योंकि अनुशासन और पार्टी के रूप क अनुपालन सभी के लिए समान है व्यक्ति बड़ा हो या छोटा.
सचिन पायलट ने बुधवार को मीडिया को दिए गए इंटरव्यू में कहा कि अनुशासनात्मक समिति तत्कालीन पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी के खिलाफ खुली अवहेलना के संबंध में निर्णय में विलंब का सबसे अच्छा जवाब दे सकते हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबी माने जाने वाले तीन नेताओं को 4 महीने पहले दिए गए कारण बताओ नोटिस का हवाला देते हुए कहा कि कांग्रेस की अनुशासनात्मक कार्रवाई समिति के अध्यक्ष मलिकार्जुन खरगे और कांग्रेस नेतृत्व इसका सही जवाब दे सकते हैं कि मामले में निर्णय लेने में अप्रत्याशित क्यों हो रहा है?
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मीडिया को दिए गए इंटरव्यू में सचिन पायलट ने कहा कि विधायक दल की बैठक 25 सितंबर को मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई थी. यह बैठक नहीं हो सकी. बैठक में जो भी होता वह अलग मुद्दा था, लेकिन बैठक ही नहीं होने दी गई. उन्होंने कहा कि जो लोग बैठक नहीं होने देने और समांतर बैठक बुलाने के लिए जिम्मेदार थे, उन्हें प्रथम दृष्टया अनुशासनहीनता के लिए नोटिस दिए गए थे.
सचिन पायलट ने कहा कि मुझे मीडिया के माध्यम से यह जानकारी मिली कि इन नेताओं ने नोटिस के जवाब दे दिए. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की तरफ से अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है. मुझे लगता है कि एके एंटनी के नेतृत्व वाली अनुशासनात्मक कार्यवाही समिति, कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी नेतृत्व ही इसका सही जवाब दे सकते हैं कि निर्णय लेने में इतना ज्यादा विलंब क्यों हो रहा है?
सचिन ने कहा कि, विधानसभा अध्यक्ष द्वारा उच्च न्यायालय में दायर हलफनामे में इसका उल्लेख किया गया है कि विधायकों के इस्तीफे मिले और कुछ ने व्यक्तिगत तौर पर इस्तीफे सौंपे थे. उनके अनुसार हलफनामे में यह भी कहा गया कि कुछ विधायकों के इस्तीफे फोटोकॉपी थे और उसे स्वीकार नहीं किया गया, क्योंकि वह अपनी मर्जी से नहीं दिए गए थे.
पायलट ने कहा कि यह एक कारण था जिसके आधार पर विधानसभा अध्यक्ष ने इस्तीफे अस्वीकार किए. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह इस्तीफे स्वीकार नहीं किए गए क्योंकि अपनी मर्जी से नहीं दिए गए थे. अगर वह अपनी मर्जी से नहीं दिए गए थे तो यह किसके दबाव में दिए गए थे? क्या कोई धमकी थी? लालच था या दबाव था? यह एक ऐसा विषय है जिस पर पार्टी की ओर से जांच किए जाने की जरूरत है.
सचिन ने कहा कि हम बहुत जल्द चुनाव की तरफ बढ़ रहे हैं. बजट भी पेश हो चुका है. पार्टी नेतृत्व ने कई बार कहा है कि वह फैसला करेगा कि कैसे आगे बढ़ना है. राजस्थान में कांग्रेस पार्टी के बारे में जो भी फैसला करना है वह होना चाहिए. क्योंकि साल के आखिर में चुनाव है. अगर हर 5 साल पर सरकार बदलने की 25 साल से चली आ रही परंपरा बदलनी है और फिर से कांग्रेस की सरकार लानी है तो जल्द फैसला करना होगा.