इस साल यानी 2023 के अंत में 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले इन्हें राजनीतिक दलों की शक्ति परीक्षण के तौर पर देखा जा रहा है और खास तौर पर बीजेपी के लिए. 9 राज्यों में होने वाले चुनाव की शुरुआत चुनाव आयोग ने उत्तर पूर्व के 3 राज्यों में त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में चुनाव कराए जाने की घोषणा कर दी है.
त्रिपुरा में 16 फरवरी, मेघालय और नगालैंड में 27 फरवरी को चुनाव होंगे. 2 मार्च को तीनों राज्यों के नतीजे एक साथ घोषित किए जाएंगे. चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही तीनों राज्यों में आदर्श चुनाव संहिता लागू हो गई है. बीजेपी जहां अपने पैर फैलाने के लिए वही बाकी दल अपनी खोई प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए चुनाव में उतरेंगे.
भले ही चुनाव 3 राज्यों में होने हैं लेकिन त्रिपुरा चुनाव (2023 Tripura Legislative Assembly election) पर सबकी नजर बनी हुई है. त्रिपुरा जाकर ही अमित शाह ने राहुल गांधी को 2024 में राम मंदिर की तारीख बताई है. इसके अलावा त्रिपुरा जाकर ही अमित शाह ने बंगाल की तरह मोर्चा संभाला हुआ है. त्रिपुरा में ही विधायकों का चुनाव पूर्व दलबदल चिंता की वजह बना हुआ है. त्रिपुरा एक ऐसा राज्य है जहां एक वक्त वामपंथी शासन का गढ़ था. लेकिन पिछली बार 2018 के चुनाव में बीजेपी ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता को यहां से उखाड़ फेंका था.
अब आम जनता से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों के जेहन में यह सवाल दौड़ रहा है कि क्या इस बार बीजेपी अपनी सत्ता बरकरार रख पाएगी या फिर से सीपीएम को मौका मिलेगा? क्या टीएमसी के रूप में राज्य के लोगों को नया विकल्प मिल सकता है? इन सभी सवालों का जवाब जाना जरूरी है. त्रिपुरा के सियासी समीकरण को समझना बेहद जरूरी है.
2018 में 25 साल से शासन कर रही सीपीएम को उसी के गढ़ में मात देकर बीजेपी ने त्रिपुरा की राजनीति में एक नए युग की शुरुआत की थी. कई साल से त्रिपुरा की सत्ता को संभाल रही सीपीएम 2018 के चुनाव में बुरी तरह हार गई थी. सीपीएम को मात्र 16 सीटें नसीब हुई थी. हालांकि वोट प्रतिशत में सिर्फ 1% का मामूली अंतर था. सीपीएम को 42.22% वोट हासिल हुए थे. इससे पहले हुए 8 विधानसभा चुनाव में कभी भी सीपीएम का वोट शेयर 45% से कम नहीं हुआ था.
त्रिपुरा की राजनीति में कभी कांग्रेस की गिनती भी दमदार खिलाड़ियों में होती थी, लेकिन पिछली बार विधानसभा चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुला था. बीजेपी ने 2018 में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी थी. चुनाव से 2 साल पहले से ही अपनी रणनीति पर काम करने लगी थी. एक बड़ी टीम को त्रिपुरा की जनता के बीच केंद्र सरकार की योजनाओं और उपलब्धियों के प्रचार में लगाया था. प्रधानमंत्री मोदी से लेकर कई केंद्रीय मंत्रियों ने लगातार त्रिपुरा का दौरा किया था. बीजेपी ने त्रिपुरा में प्रचंड प्रचार किया था, नतीजा बीजेपी ने सरकार बना ली थी.
बीजेपी 2023 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती है. यही वजह थी कि 6 साल पहले कांग्रेस पार्टी से आए माणिक साहा को कमान दिया गया. इसे बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व की ओर से मिड कोर्स करेक्शन के तौर पर देखा गया. माणिक साहा को मुख्यमंत्री बनाना बीजेपी का बड़ा प्लान था. 2014 में सत्ता संभालने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पूर्वोत्तर राज्यों में विकास को प्राथमिकता दी है, ऐसे दावे बीजेपी करती रही है.
इसके साथ ही 2014 के वक्त में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे अमित शाह ने पूर्वोत्तर राज्यों में बीजेपी का जनाधार बढ़ाने की रणनीति पर भी काम किया था. इस रणनीति से भी पिछली बार त्रिपुरा चुनाव में बीजेपी को काफी लाभ हुआ. पिछली बार का त्रिपुरा विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर लड़ा गया था. मोदी फैक्टर ने कमाल कर दिया था. इस बार यह कितना कारगर साबित होता है, इस पर भी बीजेपी की सत्ता वापसी निर्भर करती है.
इस बार त्रिपुरा में बीजेपी को कांग्रेस से भी बड़ी चुनौती मिलने की संभावना है. कांग्रेस लगातार त्रिपुरा में जनता के बीच बीजेपी की नीतियों के खिलाफ उतरी हुई है. कांग्रेस को जनता का भरपूर समर्थन मिलता हुआ भी दिखाई दे रहा है. लेकिन दूसरी तरफ टीएमसी भी बीजेपी को त्रिपुरा में कड़ी टक्कर देने के मूड में है. पिछले 5 सालों में त्रिपुरा में कांग्रेस के कई नेताओं ने टीएमसी का दामन थामा है. कांग्रेस को इसका कुछ नुकसान भी उठाना पड़ सकता है, हालांकि यह नुकसान कितना बड़ा होगा यह चुनाव के बाद पता चलेगा.
पिछले विधानसभा चुनाव में मिले वोट प्रतिशत को ध्यान रखकर देखा जाए तो इस बार कांग्रेस और सीपीएम गठबंधन मजबूत स्थिति में है, बशर्ते वह पिछले चुनाव में वोट प्रतिशत को बरकरार रख पाए तो यह बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा कर सकता है. पिछली बार के चुनाव में बीजेपी को 43.5% वोट मिले थे, जबकि सीपीएम और कांग्रेस को संयुक्त रूप से 44%. जो कि बीजेपी के वोट प्रतिशत से थोड़ा अधिक है. अगर टीएमसी त्रिपुरा में कुछ कमाल नहीं कर पाती है तो बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी करना मुश्किल हो सकता है, सीपीएम और कांग्रेस के गठबंधन के सामने.