सोमवार को आटा, चावल और अन्य खाद्य वस्तुओं को पहली बार टैक्स के दायरे में लाया गया (Tax on Food) और इनकी कीमतें बढ़ गई. आजाद भारत में अनाज पर पहली बार टैक्स लगा है. वहीं अब इसके खिलाफ कारोबारी देशव्यापी प्रदर्शन की योजना बना रहे हैं. विश्लेषकों का मानना है कि खाद्य वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाने से महंगाई बढ़ेगी और इसका खामियाजा गरीबों को भुगतना पड़ेगा.
एक करोड़ से अधिक छोटे दुकानदारों और थोक विक्रेताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के अध्यक्ष प्रवीण खंडेलवाल ने कहा है कि खादी उत्पादों पर 5% जीएसटी और अन्य घरेलू वस्तुओं पर टैक्स में वृद्धि ने जानता और व्यापारियों पर महंगाई का बोझ बढ़ा दिया है. पहले से पैक और लेवल किए हुए दही, लस्सी और मुरमुरे जैसी रोजमर्रा की खपत वाली वस्तुओं पर 5% की दर से जीएसटी लगेगी. आपको बता दें कि देश में महंगाई लगातार बढ़ रही है. हर क्षेत्र में महंगाई के बढ़ने से जनता पर बोझ अतिरिक्त बढ़ रहा है और आय का साधन सीमित होता जा रहा है.
अनाज और घरेलू सामान सहित कई उत्पादों पर टैक्स में बढ़ोतरी के खिलाफ व्यापारी और दुकानदार अगले सप्ताह देशव्यापी विरोध प्रदर्शन करेंगे. आपको बता दें कि पहले केवल ब्रांडेड कंपनियों के आटे, चावल और अन्य वस्तुओं पर जीएसटी लगता था. सोमवार को जब विरोध तेज हुआ उसके बाद वित्त मंत्रालय ने जीएसटी को लेकर स्पष्टीकरण जारी किया. मंत्रालय ने बताया कि जीएसटी उन खाद्य वस्तुओं पर लगाई गई है जिसका वजन 25 किलो से कम है. अगर व्यापारी 25 किलो या उससे अधिक का सामान लेकर उसे खुदरा वस्तु के रूप में बेचे तो उस पर कोई जीएसटी नहीं लगेगी.
मोदी सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम का विपक्ष ने भी जोरदार विरोध किया है पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर खाद्य वस्तुओं पर टैक्स को लेकर मोदी सरकार पर निशाना साधा है राहुल गांधी ने ट्विटर पर एक पोस्टर शेयर करते हुए बताया है कि किन वस्तुओं पर जीएसटी लगाई गई है. राहुल ने लिखा है कि, उच्च कर, कोई नौकरी नहीं! दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में से एक को कैसे नष्ट किया जाए. इस पर भाजपा का मास्टर क्लास.
बीजेपी के ही सांसद वरुण गांधी ने भी अपनी सरकार पर खाद्य वस्तुओं पर लगी जीएसटी को लेकर निशाना साधा है. उन्होंने कहा है कि आज से दूध, दही, मक्खन, चावल, दाल, ब्रेड जैसे पैक उत्पादों पर जीएसटी लागू है. रिकॉर्ड तोड़ बेरोजगारी के बीच लिया गया यह फैसला मध्यमवर्गीय परिवारों और विशेषकर किराए के मकान में रहने वाले संघर्षरत युवाओं की जेबें और हल्की कर देगा. जब राहत देने का वक्त था तब हम आहत कर रहे हैं.